अशोक वाजपेयी की कविताएं खिड़की से झाँकती हुई किसी युवती-सी हैं

(अनामिका अनु/ Anamika Anu)

क्या हम यह जान या मान पाएंगे कि हमारी दुनिया उस वास्तविक संपूर्ण ब्रह्मांड में और समय के फ्रेम में एक क्षण भर है. स्थान के फ्रेम में एक बिंदु है. ज्ञान की किताब में एक वर्ण भर है. अबोध होकर बौद्धिकता का मायाजाल फैलाकर जो प्रसन्नता और गर्व हमारे चेहरे पर दिखाई पड़ता है, उसे अखिल-अनंत ब्रहृमांड ‘अबोध शिशु की हँसी या अहंकार’ मान प्रतिक्रिया विहीन रहता है. ये सारे भाव अशोक वाजपेयी की कविताओं को पढ़ते वक्त आप महसूस कर सकते हैं.

मैं अशोक वाजपेयी को अर्धसत्यों का पूर्ण कवि मानती हूं. यहां ‘अर्धसत्य’ का मतलब ‘आधा-सच’ बिल्कुल नहीं है. सत्य को जबरदस्ती उद्घाटित, सत्यापित या जानकारी से ज़्यादा जोड़ कर न व्यक्त करने से है. जैसा कि हम सब जानते हैं कि यथार्थ का एक चित्र हो ही नहीं सकता. जितने दृष्टिकोण उतने चित्र और हर कवि की काव्य विद्या उसे संपूर्णता से कागज पर संशलिष्ट करने की कोशिश करती है. हर ईमानदार कवि ऐसी कोशिश बार-बार करता है.

अशोक वाजपेयी की कविताएं खिड़की से झाँकती हुई किसी युवती-सी हैं. जिसका पूरा चेहरा नहीं दिख पाता है, कुछ चौखट छिपा लेती है, कुछ पर्दा और कुछ दूरी. पर जो दृश्य उपस्थित होता है वह बड़ा ही सम्मोहक होता है. ऐसा कि कभी न बिसारा जा सके. वास्तव में यही कविता है. जो आपको सोचने, कल्पना करने, तलाशने की आजादी देती है. जो आपको जिज्ञासा की चौखट पर लाकर खड़ा कर देती है. वास्तव में अच्छी कविता, पढ़ने के बाद शुरू होती है. आपके भीतर कभी प्रश्न बनकर, कभी विचार बनकर, कभी जिज्ञासा का रूप लेकर लंबे समय तक विचरती है कविता.

उदाहरण के लिए अशोक वाजपेयी की कविता ‘विकल्प’ को ही लें.अशोक वाजपेयी की कविता ‘विकल्प’ में पत्थर के कुछ और होने के तमाम विकल्पों में से एक चिड़िया होने की कल्पना चिन्हार चीजों में घोल-घुलाकर विकल्प सोचने का एक सुंदर क्षण पैदा करती है. पाठक एक नई-सी कल्पना और दो अलग समय में जी रही कई चीजों में तारतम्य स्थापित करने की कोशिश करता है. ऐसी तमाम कल्पनाओं से खेलती इनकी कविताएं सजीव और निर्जीव से इतर एक संपूर्ण ब्रह्मांड की कल्पना में चीजों को देखने की सुंदर कोशिश है. पत्थर को चिड़िया, पेड़, आकाश होकर भी बतियाना, प्रेम करना, चोट की संभावना में जीना अच्छा लगता है, ऐसी तमाम बातों के साथ इनकी कविताएं अखिल ब्रह्माण्ड से छोटे-छोटे भावों का नाता स्थापित करती हैं.

Munawwar Rana – बदलाव के शायर के तौर पर हमेशा याद रहेंगे मुनव्वर राना

अशोक वाजपेयी की बहुवस्तुस्पर्शी कविताओं में बहुवचनीयता और बड़ी मात्रा में अनियोजित जीवन दृश्यों को देखा जा सकता है. शब्द की अर्थ छायाओं से उबरकर इनकी कविताओं में जो भाव संप्रेषित होते हैं वे शब्द की गुलामी नहीं करते बल्कि शब्द अनुभूतियों की सहचरी या अनुचरी की तरह गति करती है. भाषा, इतिहास, संस्कृति, कला, संवाद में विच्छिन्न संकेत इनकी कविताओं में एकत्रित, संगठित और नये तरीके से संबोधित होते हैं.

अशोक वाजपेयी की कविताओं में कला का गुरूत्व,रिश्तों की ऊष्मा और जीवन के लिए अखंड धन्यवाद ज्ञापन है. वाजपेयी की कविताओं को पढ़कर अवसाद, बाइपोलर एस्पीरेशन, डिफार्मिटी, स्टेगनेंट इमोशन्स के कई पलों को इंगित कर सकते हैं. यह अद्भुत है. यह उनकी सूक्ष्म और सटीक मनोवैज्ञानिक समझ को परिलक्षित करती है.

शब्द और कविता की चिंता और समझ दोनों इस अनंतता के अराजनीतिक नवाचारी कवि में रही है और उसे बचाने, बढ़ाने का सुंदर आग्रह और अभ्यास भी. अशोक वाजपेयी अपनी कविताओं में मूर्त और अमूर्त के बीच सुंदर और अर्थपूर्ण संवाद स्थापित करते वक्त अपने जीवन, स्मृति, विचार, दर्शन और भाषा का बहुत सुंदर यौगिकीकरण करते हैं. अशोक वाजपेयी की अपनी वैचारिक और दार्शनिक ज्योति है जो उनके प्रज्ञा, स्मृतियों और अनुभव का प्रतिफल है.

आम जनजीवन से जुड़ी स्मृतियों और चीजों को आवाज देकर कवि ने करूणा और प्रेम को केंद्र में लाया है और आम जीवन को साहित्य के लिए अपरिहार्य बना दिया है. अंतर्लोक की जिस तरह से ख़ोज कवि करते हैं, वह भी इनकी कविताओं को एक गंभीर,कोमल, सुंदर उठान देती है. करूणा विगलित दृश्यों से कवि कई जगहों पर पाठकों को पर्युत्सुक कर देते हैं.

वह बाजार के एकसेपन के प्रोत्साहन को स्वीकार चुके बहुसंख्यकों की भीड़ में असुरक्षित अल्पसंख्यकों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करते हैं. खतरे में पड़ी विविधता और बहुवचनात्मकता पर हो रहे हमले से वह हमें आगाह करते हैं. सब के लिए जगह हो और सब सुरक्षित-सानंद रहे, की उदार और आवश्यक भावना से ओत-प्रोत होकर वह कविता लिखते हैं.

कवि बच्चों की पुकार सुनकर, उनके खेल में पूर्वजों को लौटते, खिलखिलाते, हँसते देखते हैं. वे आशा से लबालब स्वप्न देखते हैं जिसमें बच्चे यमलोक पर धावा बोल अपने पुरखों के तमाम बंधनों को खोल, उन्हें अपने साथ धरा पर ले आते हैं.

कवि स्वयं भी मृत्युलोक में तो जाएगा मगर वापसी के विश्वास के साथ. रस तृष्णा की ओर धकेलेगी, प्रेम विरह का दरवाज़ा दिखलाएगी. कवि देह का प्रज्ज्वलित आकाश, अमरता का छद्म, पकी इच्छाओं का धीरज छोड़कर अकेले वह उस मर्त्यलोक में यह कहता हुआ चला जाएगा:
वे नहीं आयेंगे हमारे साथ
तो क्या हम उनके साथ जा पाएंगे?

मृत्यु लोक में कवि के लौकिक जीवन की सभी विवशताएं, सभी प्रकार की पुलक, एक बीता सच हो जाएंगी
वह अंत के बाद भी चुप नहीं बैठेगा,देवता और प्रकृति से मांगेगा देह. मृत्यु लोक में भी उसकी जिज्ञासा जीवित रहेगी. वहां भी वह प्रतिरोध की आवाज़ बुलंद रखेगा, गैरवाज़िब बात पर झगड़ेगा, भड़केगा. क्षिति,जल ,पावक,गगन,समीर से कहेगा –
चलो मुझे रूप दो
आकार दो…

अशोक वाजपेयी कामनाओं को ब्रह्म और सत्य जितना ही अक्षय मानते हैं. वह कहते हैं कि सुख-दु:ख, धैर्य, लालच, सुंदरता और पवित्रता सब जब नष्ट हो जाएंगे तब भी बची रहेगी कामना. कवि कहते हैं सूरज बनना कठिन है. जो बन गया तप, ताप, शौर्य और जतन से तो समय और परिस्थिति चाहे कितनी भी बदल दे जगह; शेष रहती है उसकी रौनक और शेष रहते हैं उसके लक्षण और गुण. सूर्यास्त का भी रंग वही है जो सूर्योदय का था.

अशोक वाजपेयी की कविताओं में अपने अच्छे-बुरे की बड़ी आत्मिक और नम्य स्वीकारोक्ति देखने को मिलती है. आप कहीं भी इनकी कविताओं में अभिमान और अतिरिक्त कलह की अनुगूंज नहीं पाएंगे. अपने विराट सांस्कृतिक व्यक्तित्व, मानवीय ऊष्मा और चुंबकीय आकर्षण के साथ खड़ा बहुविध अनूठा यह व्यक्ति अपने समय का एक बड़ा कवि, लेखक, आलोचक और जागरूक नागरिक है. अशोक वाजपेयी को भले आप ‘नियम’ न माने मगर उनके जितना विराट ‘अपवाद’ हिंदी साहित्य में चाहकर भी दूसरा ढूंढ़ नहीं पाएंगे.

वह आदि का अंतहीन‌ संग्राहलय है जो‌‌ आज हमारे बीच हैं. कविता उससे मिलने की सबसे सुंदर जगह है. अशोक वाजपेयी दूसरों के लिए कुछ भी हो‌ मेरे‌ लिए करूणा के कवि हैं. वे साधारण नहीं हैं.

Anamika Anu Poet, Anamika Anu Ki Kavita, Anamika Anu Writer, Anamika Anu Books,

Tags: Books, Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Literature

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *