अल्मोड़ा में यहां मूर्छित हो गए थे स्वामी विवेकानंद! जानें किस मुस्लिम फकीर ने बचाई थी जान

रोहित भट्ट/अल्मोड़ा. उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में कई ऋषि-मुनि यहां पर आ चुके हैं.जिन्होंने यहां आकर ध्यान किया और बताया अल्मोड़ा में आखिर क्या विशेष है. आज हम बात करने वाले हैं स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) की, जिनका अल्मोड़ा से काफी गहरा नाता रहा है. स्वामी विवेकानंद तीन बार अल्मोड़ा आए थे. साल 1890, 1897 और 1898 में वह यहां आए थे. स्वामी जी बताते थे कि हिमालय की गोद में बसे अल्मोड़ा में आकर उन्हें अद्भुत शांति की अनुभूति होती है.

सबसे पहले स्वामी विवेकानंद 31 अगस्त 1890 में अपने गुरु भाई स्वामी अखंडानंद महाराज के साथ काठगोदाम से अल्मोड़ा आए थे. पर अचानक अल्मोड़ा के कर्बला के पास वह मूर्छित हो गए. कर्बला के पास एक फकीर की नजर उनके ऊपर पड़ी. जिनका नाम था जुल्फिकार अली और उन्होंने स्वामी जी को ककड़ी और पानी दिया. जहां पर स्वामी जी मूर्छित हुए थे, उसे स्थल को आज भी संजोकर रखा गया है, जिसकी देखभाल अब जुल्फिकार अली के पोते अख्तर अली करते हैं.

इस मकान से जुड़ी हैं स्वामी विवेकानंद की यादें
अल्मोड़ा के खजांची मोहल्ले में स्थित लाल बद्री साह के मकान में स्वामी विवेकानंद दो बार यहां पर रुके थे. 30 और 31 अगस्त 1890 और 11 मई 1897 को स्वामी विवेकानंद यहां रुके थे. इस मकान में आज भी स्वामी विवेकानंद से जुड़ी कई यादें आज भी यहां पर रखी गई हैं, जिन्हें देखने के लिए लोग यहां पर दूर-दूर से आते हैं. इसके अलावा थॉमसन हाउस, स्याही देवी, कसार देवी में भी स्वामी विवेकानंद ने कुछ समय बिताया था.

जुल्फिकार अली ने की थी देखभाल
अख्तर अली ने बताया कि उनके दादाजी जुल्फिकार अली ने स्वामी विवेकानंद को इसी स्थान पर मूर्छित देखा था. जिसके बाद उन्होंने उन्हें ककड़ी और पानी दिया था. अब वह इस स्थान की देखरेख करते हैं. उन्होंने बताया कि यहां पर काफी संख्या में लोग यहां पर आते हैं.

कई राज्यों से आते हैं पर्यटक
रामकृष्ण कुटीर के अध्यक्ष स्वामी ध्रुवेशानन्द महाराज ने बताया कि स्वामी विवेकानंद का अल्मोड़ा से काफी गहरा संबंध रहा है. स्वामी जी तीन बार यहां आए थे और स्वामी विवेकानंद से जुड़ी कई यादें आज भी यहां पर सहेजकर रखी गई हैं. इन्हें देखने के लिए लोग पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, मध्य प्रदेश आदि राज्यों से लोग यहां पर पहुंचते हैं.

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