कुंदन कुमार/गया. धान या गेंहू की कटनी करने के बाद खेतों में बचे अवशेष या पराली को किसान जला देते हैं, जिससे वायु प्रदूषित होती है. खेत की उर्वरा शक्ति भी घट जाती है. उपज कम जाती है. इन सबको लेकर किसान पराली प्रबंधन को लेकर काफी चिंतित रहा करते थे, लेकिन इसका समाधान अब कृषि वैज्ञानिकों ने निकाल लिया है. यह किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा. किसानों को खेत में पराली जलाने से छुटकारा मिल जाएगा. दरअसल, पराली से अब बायोचार बनाया जाएगा और इसके लिए पायलेट प्रोजेक्ट के तहत गया जिला को चिन्हित किया गया है. कृषि विज्ञान केन्द्र मानपुर में पराली से बायोचार उत्पादन के लिए उत्पादन इकाई लगी है.
खेत में कटनी के बाद बचे अवशेष को कृषि विज्ञान केंद्र लाया जाएगा और बायोचार उत्पादन इकाई में उर्वरक तैयार किया जाएगा. इस उर्वरक को किसान खेत में डालेंगे तो उपज काफी बेहतर होगी. 11 फीट गोलाकार, पांच इंच चौड़ी दीवार 12 फीट लंबाई में खड़ी की गई है. इसके अंदर और बाहर मिट्टी से चारों ओर प्लास्टर किया गया है. बायोचार यूनिट के ऊपर सुरंग रहती है, जिसमें पुआल डाली जाती है. उसके नीचे छोटा सा छिद्र रहता, जिससे तैयार उर्वरक निकाला जाता है. इस आकार की यूनिट में एक बार में 10 क्विंटल पुआल डाला जाता है. इसमें आग बगैर आक्सीजन के लगाई जाती है और दो से तीन दिन बाद बायोचार तैयार हो जाता है.
इस लिए बनती है एक विशेष प्रकार की भट्ठी
गया कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डाॅ.अशोक कुमार ने बताया कि पुआल या पराली जलाने से कार्बन डाई आक्साइड निकलता है, तो पर्यावरण के लिए नुकसानदायक साबित होता है. बायोचार के लिए एक विशेष प्रकार की भट्ठी बनती है, जिसमें कार्बन को ठोस रूप से अवशोषित किया जाता है. भट्ठी में पुआल को एक तापमान पर जलाकर उससे उर्वरक बनाया जाएगा. इससे किसान पराली खेतों में नहीं जलाएंगे, जिससे प्रदूषण कम होगा. साथ ही किसानों को मुफ्त में खाद मिल जाएगी जिससे खेती में उनकी लागत कम आएगी.
मिट्टी में कार्बन की मात्रा में होगी बढ़ोतरी
उन्होंने बताया किसान फसल अवशेष को खेतों में जला देते हैं, जिससे मिट्टी में उपलब्ध जरूरी पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं. विभाग फसल अवशेष का बायोचार बनाकर खेतों में उर्वराशक्ति बढ़ा रही है. बायोचार के उपयोग से मिट्टी में कार्बन की मात्रा में बढ़ोतरी होगी. बायोचार का उपयोग 20 क्विंटल प्रति एकड़ भूमि में किया जाता है. पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए किसानों को इस विधि का उपयोग करना चाहिए.
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FIRST PUBLISHED : November 23, 2023, 17:45 IST