अब डब्बा दिलाएगा समय पर दवाई खाने की याद, इस बच्चे ने बनाई कमाल की डिवाइस

सच्चिदानंद/पटना. आजकल दवाइयों का सेवन बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक करते हैं. ऐसा कई बार होता है कि लोग समय पर दवाई लेना भूल जाते हैं. बुजुर्गों को यह पता भी नहीं होता है कि कौन सी दवाई कब लेनी है. इसी समस्या को दूर करने के लिए पटना के डीपीएस में कक्षा सातवीं के छात्र अस्मित राज ने एआई की मदद से एक ऐसा मेडिसिन बॉक्स बनाया है जो अपने आप बोलकर दवाई खाने की याद दिलाता है. दवाई खाने के समय पर मेडिसिन बॉक्स से आवाज आती है, ‘नाना जी, दवाई खाने का समय हो गया है’. इसके साथ ही आपके मोबाइल पर कॉल भी आ जाता है.

एआई की मदद से होता है ऑपरेट
दरअसल, 12 वर्षीय अस्मित राज ने एआई बेस्ड एप बनाया है जिसका नाम ‘निरोगिफाइ’ है. इसमें कुल चार फीचर हैं. पहला, एआई डॉक्टर जहां आप डॉक्टर से कंसल्ट कर सकते हैं. दूसरा, आयुर्वेदिक रसोई जहां हर्बल मेडिसिन के बारे में जान सकते हैं. साथ ही हर्बल मेडिसिन का प्रयोग करने की विधि के बारे में भी जान सकते हैं. तीसरा, कैलोरी मीटर है जिसमें किसी भी पैकेट फूड में मौजूद सामग्री के बारे में जानकारी मिलती है. चौथा, ‘मेड सिंक बॉक्स’ जो समय पर कॉल और मैसेज के जरिये दवा लेने के लिए याद दिलाता है.

कैसे काम करता है मेडिसिन बॉक्स
यह एआई मेडिसिन बॉक्स ‘निरोगिफाइ’ एप से कनेक्टेड होता है. मेडिसिन बॉक्स में चार अलग-अलग सेक्शन है. जिसमें चार अलग-अलग दवाई डाल सकते हैं. एप के जरीए दवा के टाईम को सेट किया जाता है. निर्धारित समय आते ही बॉक्स के अंदर ग्रीन लाईट जल जाती है. साथ हीं कस्टमाइज्ड मैसेज अलार्म बजने लगता है. जैसे कि ‘नाना जी, दवाई खाने का समय हो गया है’. इस मैसेज को अपने हिसाब से बदल सकते हैं. इसके साथ ही आपके मोबाइल पर कॉल भी आ जायेगा. कॉल उठाते ही कस्टमाइज्ड मैसेज सुनाई देने लगता है.

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नाना जी की मृत्यु से मिली प्रेरणा
अस्मित बताते हैं कि बचपन में नाना जी के सीने में हल्का दर्द हुआ. उन्होंने इसको नजरअंदाज कर दिया. धीरे-धीरे यह समस्या बड़ी हो गई और उनको हॉस्पिटल जाने की नौबत आ गई. अस्पताल जाने के क्रम में ही उनकी मृत्यु हो गई. इस घटना का मेरे उपर बहुत बड़ा असर हुआ. मुझे लगा अगर नाना जी उस समय डॉक्टर से मिल लेते तो शायद आज हमलोग के साथ होते. इस घटना से प्रेरित होकर मैंने यह ऐप डेवलप करा. जहां फ्री में सारी सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं.

लॉकडाउन में सीखी कोडिंग
अस्मित बताते हैं कि इस ऐप को बनाने के लिए रिसर्च किया. लॉकडाउन के समय यूट्यूब से कोडिंग सीखा. बड़े भाई अक्षित भी बाल वैज्ञानिक हैं. उन्होंने भी कोडिंग में बहुत मदद की. माता-पिता और स्कूल का भी बहुत सहयोग रहा. इस मेडिसिन बॉक्स और ऐप को बनाने में मात्र 800 रुपये का खर्च आता है. अगर इसका प्रोडक्शन भारी संख्या में किया जाए तो कीमत में कमी आ जाएगी.

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