रूपांशु चौधरी/हजारीबाग.हजारीबाग के विनोबा भावे विश्वविद्यालय में जनजातीय अध्ययन केंद्र की स्थापना के साथ ही झारखंड के जनजाति एवं क्षेत्रीय संस्कृति व भाषा के अध्ययन का एक स्वर्णिम दौर शुरू होने जा रहा है. राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन के द्वारा शुक्रवार को इसका विधिवत उदघाटन किया गया. यह झारखंड का पहला जनजातीय अध्यन केन्द्र है. जहां झारखंड सहित देश भर के जनजातियों के कला, नृत्य, भाषा, लिपि यदि पर शोध किया जायेगा.
विश्वविद्यालय प्रांगण में लगभग 22 हजार स्क्वायर फीट में 6 करोड़ की लागत से तैयार जनजातीय अध्ययन केंद्र ग्राउंड फ्लोर समेत तीन तल्ले का है. जिसमें चार स्टुडियों, चार क्लास रूम, एक सभागार, एक निदेशक कार्यालय, एक ओपन आफिस, एक पुस्तकालय, एक कम्प्यूटर लैब, एक कैफे समेत शौचालय है. इसके निर्माण में लगभग पांच साल लगे हैं. इसे आधुनिक ढंग से तैयार किया गया है.
करोड़ की लागत से तैयार जनजातीय अध्ययन केंद्र
कार्यक्रम में उपस्थित हजारीबाग लोकसभा के सांसद जयंत सिन्हा ने अपने संबोधन में कहा कि झारखण्ड कई जनजातियों का निवास स्थान है. जनजातियों की अपनी भाषा, कला, नृत्य, लिपि, रहन सहन, संस्कृति है. लेकिन वक्त के साथ साथ ये विलुप्त होते जा रही है. इसे संजोकर रखने के विचार से ही, यहां इसकी स्थापना की गई है. यहां पर आकार देश भर के शोधार्थी इन सब चीज़ों पर शोध कर पाएंगे.उन्होंने अपने सम्बोधन में पदम श्री बुलू इमाम का जिक्र करते हुए कहा कि भविष्य में यहां म्यूजियम खोलने का प्रयास करेंगे. जहां बुलू इमाम से उनके म्यूजियम में रखी हुए चीजों को यहां दान करने को लेकर बात करेंगे. उनके पास झारखण्ड और जनजातीय आर्टिकल मौजूद है.
झारखंड एक चौथाई आबादी जनजातियों की
वहीं कार्यक्रम में शामिल राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने कहा कि विनोबा भावे विश्वविद्यालय में स्थापित जनजातीय अध्ययन केंद्र झारखंड के जनजातीयों के जीवन और दर्शन के अध्ययन और शोध को नई ऊंचाई प्रदान करेगा. हमारे झारखंड राज्य में लगभग एक चौथाई आबादी जनजातियों की है. यह लोग बहुत अधिक विकसित नहीं है. यह अपने एकांत में स्वच्छ जीवन यापन करते हैं. हम चाहते हैं कि इन्हें झारखंडी समाज के केंद्र में स्थापित करें. उनके ऐतिहासिक विरासत और पारंपरिक संस्कृति को संरक्षित करने की आवश्यकता है. अन्यथा यह धीरे-धीरे लुप्त भी हो सकती है.
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FIRST PUBLISHED : January 21, 2024, 11:46 IST