अब कहां रहा वो जमाना,सिर्फ 1रुपए में भर जाता था झोला,दादी-नानी की कहानियां

आकाश कुमार/जमशेदपुर. आज के युग में मनोरंजन के कई साधन फोन, टीवी, जैसी चिजें मौजूद है. लेकिन, क्या आप जानते हैं?, आज से करीब 40 50 वर्ष पहले लोग किस तरह मनोरंजन करते थे. यदि नहीं तो जानिए 65 वर्षीय से विश्वेश्वर प्रसाद ने लोकल 18 से कहा कि वे जब 10 -12 साल के थे. तो उस समय मनोरंजन का ज्यादा साधन तो नहीं था. लेकिन, जैसे ही मेला लगता था तो सभी लोग खुश हो जाते थे.मेला का लुत्फ उठाने दूर दराज से लोग आते थे.

विशेश्वर जी ने कहा कि साल में करीब 5 से 7 बार मेला लग जाता था. जिसमें टुसू और दुर्गा पूजा का मेला सबसे खास हुआ करता था. इसके अलावा मेला में अक्सर भारत के कोने-कोने से लोग आकर लगते थे. जिसमें, मीना बाजार लगता था यहां महिलाओं के लिए एक से बढ़कर एक झुमका, टिकली, बिंदी, चूड़ी व साज सिंगर का सामान बिक्री होता था. वहीं, झूला के लिए हाथ से चलने वाले झूला जिसे लोग टोरा टोरा कहते थे. मेला खाने में जलेबी, रेवाड़ी, लड्डू बुंदिया और सेव हुआ करता था.

1- 2 में ही चल जाता था काम
वहीं लोग अपने पॉकेट में मात्र 1 रुपए से 2 रुपए तक रखते थे. जिसमें, कम से कम दो झोला सामान भर कर ले आते थे. उसके अलावा खूब सारा खाना पीना खाकर घर को लौट जाते थे. आज के जमाने में मेला के नाम में सिर्फ शोर शराबा और ताम झाम हुआ करता है. लेकिन, उस समय सभी लोग शांत स्वभाव के होते थे और हर एक पल को काफी बेहतरीन तरीके से जीते थे.

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