अपने आप ऊगता है ये फल…स्वाद में है खारा! शुगर, पीलिया समेत 12 रोगों की है रामबाण औषधि

नरेश पारीक/चूरू. थार के द्वार कहे जाने वाले राजस्थान में उगने वाली खरपतवारमें कुछ ऐसी जड़ी,बूटियां भी ऊगली है जिनका आर्युवेद में खासा महत्व है. जी हां दिलचस्प बात तो ये है कि ये खरपतवार खेतो में अपने आप उगती है और अज्ञानता के चलते अक्सर किसान खेतो से उखाड़ किसान इसे यूं ही फेंक देते हैं या फिर पशुओं को खिला देते हैं.

थार के रेगिस्तान में उगने वाला ऐसा ही एक फल है तुंबा  जो दिखने में बड़ा ही आकर्षक है लेकिन स्वाद में काफी खारा है. लेकिन ये औषधीय गुणों से भरपूर है. सहनाली बड़ी के किसान बताते हैं कि तुंबा को रेगिस्तानी क्षेत्र में खरपतवार माना जाता है. जो खऱीफ के सीजन में बेल के रूप में उगता है. खेतों से तो इसे किसान उखाड़ कर फेंक देते हैं लेकिन बारिश के मौसम में रेत के धोरों में ये प्राकृतिक रूप से ही उग जाता है. यहीं पककर इसके बीज गिर जाते हैं और फिर अगले साल यही बीज फिर से उग आते हैं.

रेगिस्तान में पशुओं के लिए वरदान
गर्मियों में जब रेत में कहीं दूर-दूर तक पानी नहीं मिलता तब जानवर इसे खाकर अपनी प्यास बुझाते हैं. क्योंकि तुंबा के गूदे में तरबूज की तरह काफी मात्रा में पानी होता है. ऊंट भी इसे खाते हैं जिससे उनकी पानी की जरूरत पूरी होती है. ऊंटों के साथ-साथ बकरी, गाय, भेड़ और रेतीले क्षेत्र में पाए जाने वाले जंगली जानवर भी इसे चाव से खाते हैं. खाने के बाद इनके मल से भी तुंबा का बीज दूसरे क्षेत्रों में पहुंचता है.

तुंबा का औषधीय महत्व
तुंबा का उपयोग बीमारियों के लिए दवा के तौर पर किया जाता है. नूर मोहम्मद बताते हैं कि तुंबा को सुखाकर-पीसकर इसका चूर्ण लेने से कब्ज की कैसी भी समस्या खत्म हो जाती है. साथ ही शुगर, पीलिया, मानसिक तनाव, मूत्र रोगों में भी यह आयुर्वेदिक दवा के रूप में काम आती है. तुंबा से आयुर्वेद में कई दवाएं भी बनाई जाती हैं. यह शुगर, पीलिया, मानसिक तनाव, मूत्र रोगों ,शीलत, रेचक और गुल्म, पित्त, पेट रोग, कफ, कुष्ठ और बुखार के लिए रामबाण औषधि है.

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