आशीष कुमार/पश्चिम चम्पारण. ईश्वर को ज्ञान से नहीं, बल्कि प्रेम से जाना जा सकता है. इस कथन की सार्थकता उस वक्त समझ में आती है, जब चंद्रमा और मंगल की सैर कराने वाला विज्ञान कुदरत के छोटे से छोटे सवाल के सामने अपने घुटने टेक देता है. इस दुनिया में हर दिन, कुछ न कुछ अजीबो गरीब घटनाएं घटती रहती है, जिसकी कल्पना भी इंसान नहीं कर सकता है.
आज हम आपको कुछ ऐसी ही जानकारी देने वाले हैं, जिसे जान आप भी भौचक रह जाएंगे. देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को आपने किसी चहारदिवारी के अंदर ही देखा होगा, लेकिन क्या आपने कभी किसी देवता की प्रतिमा या शिवलिंग को विशालकाय वृक्ष के अंदर देखा है?
वट वृक्ष के अंदर है महादेव का निवास
जिले के बगहा-2 प्रखंड के तरवलिया गांव में भगवान शंकर का एक ऐसा मंदिर है, जो विशालकाय बरगद वृक्ष के अंदर स्थापित है. गांव वालों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण किसी व्यक्ति ने नहीं, बल्कि प्रकृति ने खुद ही किया है. जिस स्थान पर शिवलिंग को स्थापित किया गया है, उस पूरे जगह को वट वृक्ष ने चारों तरफ से घेर लिया है.
अचंभे की बात यह है कि वट वृक्ष अंदर से पूरा खाली है. इसके अलावा उसमें एक छोटा सा द्वार भी बना हुआ है, जहां से श्रद्धालु शिवलिंग की पूजा के लिए अंदर जाते हैं. ग्रामीणों की मानें तो यह सब प्राकृतिक है. जब भी इस मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ है, खड़ी की गई दीवारें आप रुप ही ढह गई.
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महादेव के अनन्य भक्त थे संत हरिनाथ
स्थानीय निवासी 75 वर्षीय ब्रज भूषण यादव बताते हैं कि सैकड़ों वर्षों से यह वृक्ष और उसमें स्थापित शिवलिंग यहां मौजूद है. यहां के बुजुर्ग वर्षों से अपने वंशजों को इस मंदिर की विशेषता और निर्माण से जुड़ी कहानी सुनाते आ रहे हैं. ब्रजभूषण ने भी अपने पिता और दादा से महादेव के इस खास मंदिर की कहानी सुनी है.
उनका कहना है कि तरवलिया गांव में सैकड़ों वर्ष पहले एक संत रहा करते थे. उनका नाम हरिनाथ था. वो एक सिद्ध पुरुष थे. उनके लिए महादेव और मां आदिशक्ति की भक्ति ही सबकुछ थी. एक दिन संत हरिनाथ ने गांव से पैदल ही बनारस तक का सफर तय किया. गांव लौटते वक्त वह अपने सिर पर रखकर एक शिवलिंग लाए.
समाधि पर स्थापित है शिवलिंग
बकौल ब्रजभूषण, गांव लौटने के कुछ समय बाद बाबा ने समाधि ले ली. समाधि लेने के बाद उनके शिष्य संत उमा गिरी ने समाधि पर ही शिवलिंग को स्थापित कर पूजा स्थल बना दिया. स्थल निर्माण के बाद जब ग्रामीणों ने उसे चहारदीवारी के अंदर लाने का प्रयास किया, तब खड़ी की गई दीवार आपरूपी ढहने लगीं. ग्रामीणों की मानें तो, हर बार ऐसा ही हो जाता था.
ऐसे में एक दिन संत उमा गिरी ने सपना देख कि वहां मंदिर का निर्माण प्राकृतिक रूप से होना है, कोई भी व्यक्ति भवन निर्माण की कोशिश न करे. इसके बाद उसे वैसे ही छोड़ दिया गया. जिसे कुछ समय के बाद वट वृक्ष ने अपने अंदर समाहित कर लिया. तब से लेकर आजतक वह स्थान वट वृक्ष की पनाह में सुरक्षित है, जहां हर दिन स्थानीय लोग पूजा करने आते हैं.
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FIRST PUBLISHED : February 24, 2024, 10:15 IST