अद्भुत नक्काशी का उदाहरण पहाड़ का एकमात्र “जैन मंदिर”, सदियों पुराना है इतिहास

कमल पिमोली/श्रीनगर गढ़वाल. प्रकृति और हिमालय की गोद में बसा श्रीनगर गढ़वाल अपने आप में ऐतिहासिक और पौराणिक विरासत को संजोए हुए है. यहां कई ऐसे मठ मंदिर हैं जो अपनी पौराणिक महत्त्वता के लिए जाने जाते हैं. श्रीनगर गढ़वाल स्थित ऐसा ही एक मंदिर है जैन मंदिर, जो अपनी शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है. 1894 में आयी बाढ़ के समय यह मन्दिर पुराने श्रीनगर में स्थित था. बाढ़ में बह जाने के बाद नए श्रीनगर का निर्माण हुआ तो यहां 1924 में मंदिर का पुनर्निर्माण मनोहरी लाल जैन व लाला शंकर दास के प्रयासों से नए बसे श्रीनगर में करवाया गया. यहां प्रतिमाओं को भी प्रतिष्ठित किया गया.

पुराने जैन मंदिर के बाढ़ में क्षतिग्रस्त होने के बाद उन्हीं पत्थरों से दोबारा मन्दिर का निर्माण किया गया. साथ ही पुराने मन्दिर से यहां प्रतिमाए भी लाई गयी थी मन्दिर का निर्माण होने तक उन प्रतिमाओ को मन्दिर के सामने (जहां वर्तमान समय में मॉडर्न जूनियर हाई स्कूल चल रहा है) स्थापित किया गया था.


भव्य और कलात्मक नजारा 

नए बने जैन मन्दिर का मुख्य प्रवेश द्वार मन्दिर की तरह ही श्यामल वर्ण के पत्थरों से बना भव्य तथा कलात्मक है, मन्दिर में प्रवेश के साथ ही गढ़वाल के तत्कालीन संगतराशों की कार्यकुशलता का परिचय भी यहां देखने को मिलता है. जिस पर छेनी से काफी बारीक व उत्कृष्ट नक्काशी की गई है, यह प्रवेश द्वार राजभवन तथा हवेलियों के द्वार की तरह प्रतीत होता है जिन पर किनारे की तरफ रक्षकों के द्वार पर रहने के लिए विशेष स्थान (खोली) बनाई गई है.

पहाड़ों का कमात्र जैन मंदिर
वही यहां मन्दिर के गर्भगृह में राजस्थानी शैली में बना एक दोपहिया भव्य सिंहासन मौजूद है, जिस पर भगवान ऋषभदेव और पार्श्वनाथ की मूर्तिया विराजमान है. यह ऋषिकेश के बाद पहाड़ी क्षेत्र का एकमात्र जैन मंदिर है. प्राचीन समय से जैन धर्म का देवभूमि में “अस्तित्व” मंदिर निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मनोहरी लाल जैन के पोते डॉक्टर राजेश जैन बताते हैं कि देवभूमि में जैन धर्म का प्राचीन समय से अस्तित्व रहा है.

जैन धर्म से जुड़ी मूर्तियां
जब गढ़वाल की राजधानी देवलगढ हुआ करती थी तो उस दौरान देवलगढ में जैन मूर्तिया प्रकाश में आयी. यहा 23 सेंटीमीटर ऊंची शांतिनाथ भगवान की मूर्ति मिली थी. वही गढ़वाल व कुमाऊं के विभिन्न स्थानों पर (नागनाथ पोखरी, गोपेश्वर, द्वाराहाट) भी जैन धर्म से जुड़ी मूर्तियों का मिलना स्पष्ट करता है कि जैन धर्म का देवभूमि मे कई सौ वर्षों से प्रभाव रहा है. डॉ जैन आगे बताते हैं कि 1998 में प्रकाशित हुयी उनकी पुस्तक “द्वाराहाट” में जैन धर्म से जुड़ी मूर्तियों के मिलने का विवरण है.

देवताओ-देव रक्षकों की मूर्तिया 
देवभूमि उत्तराखंड में क्षेत्र रक्षक देवता के रूप में भैरव नाथ जी को स्थापित किया जाता है जो कि पूरे क्षेत्र को सुख समृद्व रखते है और रक्षा करते है वही जैन मन्दिर प्रांगण में भी क्षेत्राधिकारी भूमि के भूमियाल भैरवनाथ को स्थापित किया गया है. जो की यहा पर रक्षक देव के रूप में है भैरव नाथ की यहा पर दो प्रचीन मूर्तिया है, जिन्हें पुराने श्रीनगर में स्थित प्राचीन मंदिर से ही यहां लाई गई है.

राजस्थानी शैली में बना सिंहासन
डॉ राजेश जैन बताते हैं कि मन्दिर के गर्भगृह में प्राचीन भव्य राजस्थानी शैली में बना चौपहिया सिंहासन है जिस पर श्वेत संगमरमर की बनी प्रतिमा है जो आदिनाथ भगवान ऋषभदेव और भगवान पार्श्वनाथ की जिसके सिर पर सप्तफर्ण आछादित है ये प्रतिमाए काफी प्राचीन है मान्यताओं के अनुसार इस मन्दिर में पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है.वही 1970 में यहां जैन मुनि आचार्य विधानंद भी पहुचे थे.

यात्रियों के लिए पूरी व्यवस्था
आचार्य विधानंद उस समय मुनि की पदवी पर सुशोभित थे विधानंद जी के आने के बाद से मन्दिर का जीर्णोद्धार कार्य किया गया यहा पर यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशाला भी है, जिसमें रूकने के लिए यात्रियों से किसी भी प्रकार का शुल्क नही लिया जाता है. साथ ही यहां मूर्ति के जलाभिषेक के लिए प्राकृतिक श्रोत से पानी लाया जाता है.

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