न्यायमूर्ति अनूप चितकारा ने अपने आदेश में कहा कि आपराधिक कार्यवाही जारी रखना ‘‘कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग’’ जैसा होगा। उन्होंने कहा कि ‘‘इसमें कोई विवाद नहीं’’है कि आरोपी पीड़िता की जाति के बारे नहीं जानती थीं। पत्रकार ने उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान कहा कि वह एक कार्यक्रम को कवर करने के लिए जा रही थीं और वह शिकायतकर्ता को नहीं जानतीं और न ही उसकी जाति में बारे में उन्हें कोई जानकारी है। ऐसे में उनकी ओर से अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम का उल्लंघन किए जाने का कोई प्रश्न ही नहीं है।
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने टेलीविजन पत्रकार भावना किशोर के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को बृहस्पतिवार को रद्द कर दिया। पत्रकार की कार के कथित तौर पर एक महिला को टक्कर मारने के बाद उनके खिलाफ पिछले वर्ष अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।
‘टाइम्स नाउ’ की पत्रकार भावना आम आदमी पार्टी के एक कार्यक्रम को कवर करने के लिए लुधियाना जा रही थीं, उस कार्यक्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान शामिल हुए थे।
आरोप हैं कि जिस कार में पत्रकार और कैमरामैन यात्रा कर रहे थे,उसने एक महिला को टक्कर मार दी थी और घटना में महिला घायल हो गई थी।
प्राथमिकी में यह भी कहा गया है कि टीवी पत्रकार ने शिकायतकर्ता को ‘जाति-सूचक’ शब्द कहे थे।
पंजाब पुलिस ने पत्रकार के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की संबंधित धाराओं के तहत लापरवाही से गाड़ी चलाने और चोट पहुंचाने के अलावा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत भी मामला दर्ज किया था।
पंजाब पुलिस ने इस मामले में पत्रकार, कैमरामैन मृत्युंजय कुमार और वाहन चालक परमिंदर सिंह को पिछले वर्ष गिरफ्तार किया था। बाद में उन्हें जमानत दे दी गई थी।
पत्रकार ने उच्च न्यायालय का रुख करके प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध किया था।
न्यायमूर्ति अनूप चितकारा ने अपने आदेश में कहा कि आपराधिक कार्यवाही जारी रखना ‘‘कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग’’ जैसा होगा।
उन्होंने कहा कि ‘‘इसमें कोई विवाद नहीं’’है कि आरोपी पीड़िता की जाति के बारे नहीं जानती थीं। पत्रकार ने उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान कहा कि वह एक कार्यक्रम को कवर करने के लिए जा रही थीं और वह शिकायतकर्ता को नहीं जानतीं और न ही उसकी जाति में बारे में उन्हें कोई जानकारी है। ऐसे में उनकी ओर से अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम का उल्लंघन किए जाने का कोई प्रश्न ही नहीं है।
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