
अतीत का अलीगढ़
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देश भर में हाल के दिनों में इंडिया बनाम भारत की बहस बड़ी तेजी से चली है। कम लोगों को ज्ञात होगा कि भारतवर्षीय नेशनल एसोसिएशन नाम की संस्था का गठन अलीगढ़ में 1878 ईस्वी में हुआ था। यह भी उल्लेखनीय है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना इसके सात साल बाद 1885 में हुई थी। इस संस्था से तत्कालीन भारत की कई बड़ी हस्तियां जुड़ी थीं। इनमें मुरसान के राजा, लखनऊ के मुंशी नवल किशोर, राजा जय किशन दास और अन्य लोग शामिल थे।
इस संस्था का उद्देश्य पुरुषों और स्त्रियों का शैक्षिक स्तर सुधारना और स्थानीय बोलियों, भाषाओं को मजबूत बनाना। इनमें उपयोगी साहित्य का प्रकाशन। इस संस्था ने राजा लक्ष्मण सिंह की अध्यक्षता में भाषा संवर्धन सभा नाम से एक उप समिति का गठन किया। इस समिति ने हिंदी की कुछ महत्वपूर्ण किताबों के संग्रह के साथ एक छोटा सा पुस्तकालय स्थापित किया। यही पुस्तकालय कालांतर में लॉयल लाइब्रेरी के रूप में सामने आया।
अलीगढ़ में पढ़ने-लिखने के शौकीन लोगों के लिए सार्वजनिक पुस्तकालय स्थापित करने की योजना 1882 में बनी। तत्कालीन गवर्नर जनरल सर अल्फ्रेड लॉयल के नाम पर इसे लॉयल लाइब्रेरी की संज्ञा दी गई। सरकार की ओर से अनुमति मिलने पर 1884 में इसका नींव पत्थर मिस्टर हीथ ने पुराने टेलीग्राफ दफ्तर के परिसर में रखा था। इसकी पहली मंजिल 1889 में बनकर तैयार हुई। इसी साल आम पाठक के लिए लाइब्रेरी और अध्ययन कक्ष खोला गया। दो मंजिली लाइब्रेरी के निर्माण की लागत 39886 रुपये थी। इसका एक तिहाई हिस्सा लखनऊ के मुंशी नवल किशोर और उनके बेटे पराग नारायण ने वहन किया था।