अतीत का अलीगढ़ 12: अंग्रेजों ने बड़े पैमाने पर अलीगढ़ में कराई थी नील की खेती, जिले में थीं कई फैक्टरियां

British had cultivated indigo on a large scale in Aligarh

अतीत का अलीगढ़
– फोटो : अमर उजाला

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अलीगढ़ जिले के लोगों को मुश्किल से इस बात का यकीन होगा कि कभी यहां बड़े पैमाने पर नील की खेती होती थी। नील की खेती एक समय में सबसे ज्यादा मूल्यवान समझी जाती थी। यूरोप में औद्योगिक क्रांति के अगुवा बने अंग्रेजों के लिए नील बेहद जरूरी उत्पाद था। यह उनके द्वारा स्थापित की गई कॉटन मिलों के लिए आवश्यकता की वस्तु थी। भारत की उर्वरा भूमि नील के उत्पादन के लिए उपयुक्त थी। लिहाजा अंग्रेज जैसे-जैसे भारत भूमि को जीतते गए नील की खेती को करवाने लगे। आलम यह था कि अंग्रेज नील की जबरन खेती करवाते थे। 

किसानों को अपनी कुल खेती के 15 फीसदी रकबे पर नील की खेती करनी ही होती थी। जबरन नील उत्पादन के खिलाफ बिहार के चम्पारण जिले में गांधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ 1917 में पहला आंदोलन किया। इससे पूर्व 1859 में बंगाल में भी जबरन नील उत्पादन के खिलाफ आंदोलन हो चुका था। फिलहाल अलीगढ़ में कोई नील उत्पादन के खिलाफ कोई आंदोलन नहीं चला लेकिन देश के दूसरे हिस्सों की तरह यहां भी आहिस्ता-आहिस्ता नील उत्पादन का रकबा घटता गया।

अलीगढ़ में अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत से ही नील की खेती होने लगी थी। डी-बोइन के प्रशासन के दौरान कई अंग्रेज ठेकेदारों ने यहां नील की खेती करवानी शुरू की। खैर में  मिस्टर जार्डन, मेंडू में मिस्टर ओर, मिस्टर थार्नटन ने कोल और मछुआ में, कोल और जलाली में मिस्टर लांग क्राफ्ट, मलोई और अलहदादपुर में स्टीवर्ट और राबर्ट्सन ने नील की खेती में हाथ आजमाया। अवध प्रांत में ब्रिटिश राज कायम होने पर मिस्टर ओर अवध के लखवा की ओर शिफ्ट कर गए। जार्डन का अलीगढ़ में ही देहांत हो गया। 1848 में मिस्टर थार्नटन की भी मृत्यु हो गई। अलीगढ़ का इलाका अंग्रेजों के प्रभुत्व में आने के बाद यहां नील की कई फैक्टरियां खोली गईं।

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