अंतरिक्ष क्षेत्र में चीन की तेजी चिंता में क्यों डाल रही है अमेरिका को?

चीन अमेरिका की प्रतिद्वंदता किसी से छिपी नहीं है.  पिछले कुछ समय से अमेरिका का चीन को खतरे के तौर पर देखना ज्यादा बढ़ गया है. अमेरिका के विशेषज्ञ भी चीन की अमेरिका से आगे निकलने की कोशिशों की गंभीरता को चिंता का विषय मान रहे हैं. हाल में चीन ने जिस तेजी से अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रयास किए हैं अमेरिकी विशेषज्ञों की चिंता उससे कहीं आगे की है. चीन अंतरिक्ष के क्षेत्र की तरक्की को अमेरिकी चीन की सैन्य विस्तारवाद रवैये से जोड़ कर देख रहे हैं और उनके पास इस तरह के कई संकेत भी हैं जो यही इशारा करता है कि अमेरिका को इस दिशा में सचेत होने की जरूरत है.

चीन की मंशाएं
इसमें कोई शक नहीं कि अंतरिक्ष असंख्य ऐसे रहस्यों से भरा पड़ा है जिसकी पड़ताल हम इंसानों को करनी है. हाल में वॉशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित एक लेख में डेविड इग्नेटियस ने अपने लेख में चीन की बढ़ती गतिविधियों के कारण पैदा होने वाली इन्हीं चिंताओं को रेखांकित किया है. 2007 में चीन ने पहला एंटीसैटेलाइट हथियार का परीक्षण किया था. उसके बाद से उसने ऐसे सैटेलाइट की परीक्षण किया है जो दूसरे सैटेलाइट की खींच कर कक्षा से दूर ले जा सकते हैं.

अंतरिक्ष को नियंत्रित करना चाहता है चीन
इतना ही नहीं चीन ने ऐसे स्पेसप्लेन भी बनाए हैं जो कक्षा में वस्तओं को पकड़ सकते हैं. अंतरिक्ष के निचले स्तर पर हवा में चीन के जासूसी गुब्बारे भी उड़ने लगे हैं. कुल मिलाकर चीन अंतरिक्ष की क्षमताओं का दोहन करना चाहता है और उसे नियंत्रित करना चाहता है. वहीं अमेरिका चीन की महत्वाकांक्षाओं को पहचानने में धीमा ही रहा. अपोलो अभियान के खत्म होने और फिर स्पेस शटल के रिटायर होने के बाद अमेरिका की रुचि खत्म होती दिखने लगी. लेकिन अमेरिका ने चीन के प्रायसों की प्रतिक्रिया देर से दी.

स्पेस फोर्स का गठन
अमेरिका में पिछली सरकार में डोनाल्ट ट्रम्प ने अंतरिक्ष के सैन्य पहलू को ध्यान में रखते हुए स्पेस फोर्स नाम की सैन्य शाखा खोली. इग्नेटियस ने एस्पियन सिक्यूरिट फोरम पर चार विशेषज्ञों, यूएस स्पेस कमांड के प्रमुख जन. जेम्स एतच डिकिन्सन, स्पेस पॉलिसी के लिए असिस्टेंट सेक्रेटरी ऑफ डिफेंस एफ प्लम्ब, ऑफिस ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी पॉलिसी की असिस्टेंट डायरेक्टर एजीन उजो ओकोरो, और रॉकेट बनाने कंपनी यूनाइटेड लॉन्च एलाएंस के चीफ एक्जीक्यूटिव साल्वाटोर टोरी ब्रूनो, सही ने इस मुद्दे पर माना की चीन एक तेजी से बढ़ता खतरा है.

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कई अमेरिकी विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी सैन्य क्षमताओं का विकास कर रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

कुछ मामलों में अमेरिका की बराबरी मुश्किल
चीन के वर्चस्व के प्रयासों के जवाब सरकारी और निजी व्यवसायिक सैटेलाइट का विकसित होता समूह होगा जो पृथ्वी की निचली कक्षा में निगरानी नेटवर्क का विकास कर रहे हैं. प्लम्ब बातते हैं कि अमेरिकी रक्षा विभाग पैंटागन अंतरिक्ष के क्षेत्र में सक्रिय 130 से अधिक कंपनियों से साझेदारी कर रहा है. चीन इसकी बराबरी नहीं कर सकता है. लेकिन इस विषय पर ज्यादा जानकारी नहीं उपलब्ध नहीं है कि क्योंकि सरकार के मुताबिक क्लासिफाइड स्तर की जानकारी है.

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कुछ तो कर रही रही होगी अमेरिकी सरकार
इग्नेटियस याद दिलाते हुए लिखते हैं कि उन्हें उम्मीद है कि अधिकारी 2021 में तत्कालीन ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के वाइस चेयरमैन जन जॉन हेटन की सलाह को नहीं भूले होंगे जिसमें उन्होंने कहा कि “प्रतिरक्षा (डेटेरेंस) क्लासिफाइड संसार में नहीं होती है.” फिर भी अंदर के कुछ सूत्रों से इतना तो पता चल ही रहा है कि अमेरिका इस मामले में हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा है.

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माना जाता है कि चीन के पास ऐसी तकनीकें हैं जिससे वे स्टारलिंक सैटेलाइट समूह को नष्ट या बेकार कर सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

चीन कई तरह से पहुंचा सकता है नुकसान
पैंटागन के लीक दस्तावेजों से पता चलता है कि चीन अंतरिक्ष में एक तरह के साइबर वॉर की तैयारी कर रहा है जिससे वह अंतरिक्ष में सैटेलाइट को जाम कर सकता है अक्षम कर सकता है. एक दस्तावेज के मुताबिक चीन साइबर हमले का उपयोग कर सैटेलाइट को नियंत्रित कर सकता है जिससे वे संचार, हथियारों, इंटेलिजेंस, निगरानी तंत्रों को निष्प्रभावी तक कर सकता है. चीन में एक शोधकर्ता ने एक प्रकाशित अध्ययन मे सलाह दी है कि की चीन को कुछ स्टारलिंक सैटेलाइट को कार्यों को ठप्प कर समूह के ऑपरेटिंग सिस्टम को ही नष्ट कर देना चाहिए.

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इतना ही नहीं चीन उच्च शक्ति वाले माइक्रोवव हथियारों का इस्तेमाल कर स्टारलिंक सैटेलाइट के समूहों को भी खत्म कर सकता है. हजारों सैटेलाइट के तंत्र पनप रहे हैं इसलिए उनके संचालन के लिए नए नियम और मानक स्थापित करने बहुत जरूरी हैं. लेकिन इस मामले में कम से कम चीन से तो किसी भी स्तर पर कोई बातचीत नहीं हो रही है. लेकिन इस तरह से नहीं चलेगा. ऐसी स्थिति बदलनी होगी. नहीं तो अमेरिका जल्दी इसकी बहुत बड़ा नुकसान झेलता दिख सकता है.

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