अंकित कुमार सिंह/सीवान: बिहार के सीवान जिले में भी बिड़ला मंदिर स्थित है. यह जिले का इकलौता बिड़ला मंदिर है, जिसका घनश्याम दास बिड़ला ने निर्माण कराया था. मंदिर के निर्माण के लिए बनारस से ट्रेन के द्वारा पत्थर मंगाया गया था. उसी समय ही लक्ष्मी नारायण की मूर्ति को स्थापित किया गया था. आज भी उसी अवस्था मे मौजूद हैं. इस लक्ष्मी नारायण मंदिर को बिरला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यह जिला के प्रमुख मंदिरों में से एक है और पर्यटन का केन्द्र भी है. जहां दूर-दराज से भी पर्यटक दर्शन के लिए आते हैं.
1953 में मंदिर का कराया गया था निर्माण
दरअसल, प्रसिद्ध उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला 1953 में देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पैतृक गांव जीरादेई पधारे थे. जहां उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से मुलाकात किया और उनके आवास पर हीं रुके थे. इस दौरान श्री बिड़ला ने जीरादेई में उद्योग फैक्ट्री लगाने की बात कही थी. जिस पर राजेंद्र बाबू ने मना कर दिया था कि यहां फैक्ट्री नहीं लगेगी.
लोग समझेंगे कि वे अपने गांव को विकसित करने में लगे हैं. तब घनश्याम दास बिड़ला ने कहा था कि तो हमसे कुछ और बनवा लीजिए. तब राजेंद्र बाबू ने एक मंदिर बनवाने की बात कही थी. जिसके बाद 23 जून 1953 को मंदिर की स्थापना हुई.
ईंट के बजाय पत्थर से मंदिर का कराया गया था निर्माण
स्थानीय 90 वर्षीय बच्चा सिंह बताते है कि जब मंदिर का निर्माण करने का कार्य शुरू हुआ था तो तब वे किशोरावस्था में थे. उनके सामने ही मंदिर का निर्माण कराया गया. मंदिर निर्माण करने के लिए उस समय ट्रेन की मदद से पत्थर को वाराणसी से मंगाया गया और उसी पत्थर से मंदिर का निर्माण हुआ.
इस मंदिर में एक भी ईंट का प्रयोग नहीं किया गया. वहीं इस मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा देशरत्न राजेंद्र बाबू के बड़ी बहन भगवती देवी ने किया था. उस समय उद्योगपति घनश्याम दास बिरला भी मौजूद रहे थे.
सफेद संगमरमर और बलुआ पत्थर का हुआ है इस्तेमाल
इतिहासकार व शोधार्थी कृष्ण कुमार सिंह बताते हैं कि उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला द्वारा निर्मित यह बहुत ही शानदार मंदिर है. इस मंदिर में मां लक्ष्मी (समृद्धि की देवी) और नारायण (संरक्षक) को समर्पित है. उन्होंने बताया कि जिला का इकलौता बिड़ला मंदिर होने और खासकर जीरादेई में होने की वजह से पर्यटक यहां अक्सर आते हैं और इस मंदिर में आकर दर्शन कर पूजा-अर्चना भी करते हैं.
इस मंदिर में लगे पत्थर बहुत ही खास है, जो आज भी अपने मूल अवस्था में ही है. यह एक विशेष प्रकार का सफेद संगमरमर औऱ बलुआ पत्थर है. जिसको उस समय वाराणसी से मनाया गया था.
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FIRST PUBLISHED : September 06, 2023, 14:57 IST