अनुज गौतम/सागर. भगवान कृष्ण की नगरी नंदगांव वृंदावन में पाए जाने वाले दिव्य और अलौकिक पेड़ “कृष्ण वट” मध्य प्रदेश की धरती पर भी हैं. सागर विश्वविद्यालय के वनस्पति गार्डन में इसे संरक्षित किया गया है. कृष्णाई वटवृक्ष का वैज्ञानिक नाम भी भगवान श्री कृष्ण के नाम पर ही “फाइकस कृष्णाई” रखा गया है. पिछले 65 सालों से यह मौजूद है. इसके पत्ते कटोरीनुमा और पीछे की तरफ चम्मचनुमा होते हैं, इसलिए इसे माखन दोना वृक्ष भी कहा जाता है.
धार्मिक मान्यता है कि माखन चोरी की लीलाओं के दौरान माता यशोदा की डांट से बचने, गोपियों का माखन चुराकर बाल कृष्ण ने इसी वटवृक्ष के पत्तों में माखन रखकर उन्हें लपेट दिया था. जिसके बाद से इसके पत्ते भगवान के स्पर्श से कटोरी-चम्मच की तरह ही उगते हैं. यह पेड़ आज भी भगवान कृष्ण के ओर से द्वापर युग में की गई बाल लीलाओं का प्रत्यक्ष प्रमाण है, और इसका पत्ता आज भी भगवान के लिए समर्पित है.
कृष्ण बट के नाम से भी जाना जाता
सागर विश्वविद्यालय के वानस्पतिक शास्त्र के विभाग अध्यक्ष प्रोफ़ेसर दीपक व्यास बताते हैं कि यह एक बेहद दुर्लभ वृक्ष है और इसे धार्मिक मान्यताओं में अलग-अलग किवदंती होती है, जिसके चलते इसका नाम कृष्ण बट भी है. इसका नाम कृष्ण बट इसलिए है क्योंकि भगवान ने इस पर बैठकर माखन खाया था.
श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका में भी पाया जाता
इस पेड़ को आसानी से लगाया नहीं जा सकता है. वनस्पतिक शास्त्र में इस वृक्ष को फाइकस बेंगालेंसिस नाम के सोलानासि परिवार की श्रेणी में रखा गया है. ऐसा माना जाता है कि यह भारतीय उपमहाद्वीप का पौधा है, लेकिन इसे श्रीलंका और दक्षिणी अफ्रीकी देशों में भी देखा गया है.
आयुर्वेद की दृष्टि से इसका उपयोग
आयुर्वेद की दृष्टि से भी यह बेहद महत्वपूर्ण पौधा है, क्योंकि मानव जाति में होने वाली विभिन्न रोगों, बुखार, डायरिया, अल्सर, सर्दी-जुकाम, उल्टी, दस्त आदि में इसका उपयोग का वर्णन किया गया है. यह पौधा ऑक्सीजन देने वाले तमाम वृक्षों में सबसे अधिक ऑक्सीजन छोड़ता है, जिससे मानव स्वास्थ्य को भी बहुत लाभ होता है.
दुर्लभ वृक्ष पर विद्वानों की राय
भागवत आचार्य शिवम शास्त्री महाराज के अनुसार, कृष्णवट एक पवित्र वृक्ष है, और आज भी हमारी सागर में मौजूद है. इसे कृष्ण जन्माष्टमी के दिन किसी भी अवसर पर दूर से दर्शन करना हम सबके लिए सौभाग्य का सद्गति हो सकता है. माता यशोदा ने इसी कृष्णवट के नीचे ही कान्हा को मक्खन-दही और मिश्री में खिलाया था. यह एक दुर्लभ और पवित्र वृक्ष है.
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FIRST PUBLISHED : September 06, 2023, 15:34 IST