वन नेशन वन इलेक्शन से पहले क्या-क्या बदलाव होगा? पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने एक्सप्लेन किया

भोपाल: वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation One Election) को लेकर एक बार फिर से पूरे देश में चर्चा शुरू हो गई है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा है कि अपने संविधान निर्माताओं ने पूर्व से ही इसका प्रावधान रखा है। उन्होंने कहा कि 1962 और 1967 में वन नेशन वन इलेक्शन की तर्ज पर विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ हुए हैं। 1967 के बाद से यह बाहर होता चला गया है और पूरे साल चुनाव होते रहे। चुनाव आयोग ने इसमें सुधार लाने के लिए 1982-83 में सुझाव भारत सरकार को दिया था। कहा था कि आप अगर इसमें बदलाव लाते हैं तो हम वन नेशन वन इलेक्शन के लिए तैयार हैं। इस पर कोई अमल नहीं हुआ।

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि 2015 में सरकार ने इलेक्शन कमीशन से पूछा कि क्या फिर से वन नेशन वन इलेक्शन करना संभव है। चुनाव आयोग की तरफ से भारत सरकार को कहा गया कि बिल्कुल संभव है और हम करा सकते हैं। अगर संविधान में संशोधन हो जाए, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1981 में संशोधन हो जाए। साथ ही 1951 में संशोधन हो जाए। साथ ही ईवीएम और वीवीपैट खरीदने के लिए हमारे पास पैसा हो जाए। साथ ही पर्याप्त संख्या में पैरा मिलट्री फोर्स मिल जाएं तो चुनाव आयोग इसे कराने में सक्षम है।

One nation one election

वहीं, अभी की स्थिति को लेकर पूर्व चुनाव आयुक्त ने कहा कि लॉ में संशोधन और संविधान में पहले बदलाव की जरूरत है। कानून में संशोधन की जिम्मेदारी सरकार की है जो संसद से करा सकती है। इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को सहमति बनानी चाहिए। साथ ही इस बदलाव की तरफ आगे बढ़ना चाहिए। जब तक कानून में संशोधन नहीं होता है, तब चुनाव आयोग बाध्य है कि जिस विधानसभा का कार्यकाल खत्म होगा, वहां वह चुनाव करा देगा।

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35 लाख ईवीएम की जरूरत होगी

उन्होंने कहा कि कानून में संशोधन के बाद चुनाव आयोग के साथ बैठकर यह तय कर लें कि ईवीएम और वीवीपैट की कितनी जरूरत है। ओपी रावत ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने के लिए लगभग 35 लाख ईवीएम की जरूरत होगी। अगर वो गैप है तो उसके लिए पैसा दे दें। साथ ही उसके निर्माण के लिए समय दे दें। इसके साथ ही फोर्स की व्यवस्था कर लें तो एक साथ चुनाव संभव है। उन्होंने कहा कि इसमें टाइम लगेगा।

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पूर्व चुनाव आयुक्त ने कहा कि ये संभव नहीं है कि ये दो-चार महीने में हो जाएंगे। इसमें साल डेढ़ साल का वक्त लगेगा। वहीं, अभी हाल में जिन राज्यों में चुनाव हुए हैं, उनका क्या होगा। इसके सवाल पर ओपी रावत ने कहा कि इसके लिए चुनाव और निति आयोग ने कई सुझाव दिए हैं। इसे लेकर बहुत सारे विकल्प दिए गए हैं। सियासी दलों की सर्वसम्मिति से जो भी विकल्प तय होंगे। उसे करा लीजिए।

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देश को क्या फायदा होगा?

वहीं, वन नेशन वन इलेक्शन से देश को क्या फायदा होगा। इस पर ओपी रावत ने कहा कि इसे लेकर कोई स्टडी नहीं हुई है। ऐसे में क्या फायदा होगा ये नहीं कहा जा सकता है। लेकिन सामान्य तौर पर लगातार चुनाव की वजह से जनता के साथ-साथ नेता भी तैयारी में जुट जाते हैं। प्रशासन भी ढीला पड़ जाता है। वन नेशन वन इलेक्शन से ये हो सकता है कि पांच साल तक प्रशासन और नेता दोनों ने फोकस तरीके से काम करेंगे। इससे जनता को ज्यादा भला होगा। उन्होंने कहा कि सभी दलों को साथ लाने के लिए ही यह कमिटी घोषित हुई है। उनका यही काम होगा कि वह सर्वसम्मिति बनाएं।

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क्षेत्रीय पार्टियां हो जाएंगी खत्म?

वन नेशन वन इलेक्शन के बीच एक डर यह भी है कि क्षेत्रीय दलों का आस्तित्व खत्म हो जाएगा। इस पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि इसकी संभावना मुझे नहीं दिखती है। मैंने 2019 के रिजल्ट देखे हैं। लोकसभा चुनाव के साथ ही ओडिशा में विधानसभा चुनाव हुए हैं। वहां, एक ही पोलिंग स्टेशन में दो ईवीएम और दो वीवीपैट थे। वोटिंग हुई। एक ईवीएम ने बीजेपी को वहां कुछ भी नहीं दिया और बीजू जनता दल को तीन चौथाई सीटें दे दी। लोकसभा के लिए बीजेपी को सीटें दे दी। उन्होंने कहा कि वोटर अब समझदार हो गया है। उसे पता है कि हमें कैसी सरकार चाहिए और अपने हिसाब से वोट करते हैं।

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