सोनभद्र24 मिनट पहले
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किराए का छोटा सा कमरा और उसमें बड़े सपने जीने वाले राम बाबू…। जितने मजबूत इनके हौसले थे, उतना ही मुश्किल था इनका जीवन। उन्होंने देश-विदेश में मैच खेले और जीते। लेकिन उसके बाद भी राम बाबू को आज तक कहीं से कोई मदद नहीं मिली।
फिर भी वह पीछे नहीं हटे और चीन में होने वाले एशियन गेम्स में सफलता हासिल की। मेडल जीतने के बाद राम बाबू शनिवार को सोनभद्र से करीब 20 KM दूर रॉबर्ट्सगंज कोतवाली क्षेत्र के बहुअरा गांव लौटे, तो भावुक हो गए।
मां के साथ जीत की खुशी मनाते एशियन गेम विनर राम बाबू।
गांव आने के बाद मां-पिता ने गले लगा लिया, गांव वालों ने मिठाई खिलाई
गांव में उनके परिवार और रिश्तेदारों के अलावा कोई उनसे मिलने नहीं आया। एक-दो ग्रामीण थे, जिन्होंने माला पहनाकर उनका स्वागत किया। वहीं मां-पिता ने अपने बेटे को गले से लगा लिया। कुछ देर लोगों से बात करने के बाद वह घर की ओर चल दिए।
घर जाते समय वो लोगों को चीन के बारे में बताते रहे। घर पहुंचने पर उनकी मां मीना ने साड़ी के पल्लू से कुर्सी साफ करने के बाद राम बाबू को उस पर बैठाया। कुछ ग्रामीणों ने उनको मिठाई खिलाई और बधाई दी। धीरे-धीरे उनके घर से लोगों की भीड़ कम हो गई।
राम बाबू के आराम करने के बाद हमने उनसे बात की। बातचीत में राम बाबू ने अपने उन दिनों की बात बताई, जब वह प्रैक्टिस करने के लिए घर से दूर गए थे। और उनको घर से केवल 3 हजार 2 सौ 25 रुपए खर्च के लिए मिलते थे।
मिट्टी का कच्चा घर है, जहां उनका परिवार गुजर बसर कर रहा है
राम बाबू का घर आज भी छप्पर का है। जो छप्पर उनके घर में पड़ा है, वो भी फटा है। घर का सारा सामान भी टूटा हुआ है। घर पर बस मां और पापा ही रहते हैं। मिट्टी का कच्चा घर है, जहां उनका परिवार गुजर-बसर कर रहा है और बड़ी बात है कि ये घर भी उनका नहीं है।
- अब पढ़िए, राम बाबू की कहानी…उन्हीं की जुबानी
ये राम बाबू का घर है। उनका कहना है कि वह जल्द अपने मां-पिता को यहां से बाहर ले जाएंगे।
राम बाबू ने कहा, मैं बेहद गरीब परिवार से हूं। बहुत ही पिछड़े क्षेत्र से आता हूं। अभी एशियन गेम्स में 35 किलोमीटर की रेस वॉक मिक्स में तीसरा स्थान हासिल किया हूं। पहले तो मैं बस पढ़ाई करता था, लेकिन 2012 में ओलिंपिक गेम के बारे में पता चला। तब मुझे लगा, मैं भी स्पोर्ट्स में जा सकता हूं। उसी में अपना करियर बनाऊंगा। 12वीं पास करने के बाद मैंने स्पोर्ट्स की ट्रेनिंग शुरू कर दी।
“कभी-कभी तो एक समय ही खाना खा पता”
इसके लिए मुझे घर से बाहर जाना पड़ा, लेकिन बाहर रहना मेरे लिए आसान नहीं था। घर से जो पैसे मिलते थे, वो कम पड़ते थे। कमरे का किराया ही 1000-1500 चला जाता था। फिर डाइट प्लान और आने जाने का खर्चा..सब कुछ मैनेज करना बहुत मुश्किल होता था। कभी-कभी तो एक समय ही खाना खा पता। बल्कि एक स्पोर्ट्स-मैन को काफी अच्छी डाइट लेनी होती है।
राम बाबू की ये फोटो चीन की है। वह इस दिन भारत वापस लौटने वाले थे।
“मैंने वहीं पर रहकर पार्ट टाइम जॉब करने की सोची”
घर से जितने पैसे आते थे, वो भी मां-पापा बहुत मुश्किल से दे पाते थे। उनको अपनी समस्या बताकर मैं दुख नहीं पहुंचाना चाहता था। इसलिए मैंने वहीं पर रहकर पार्ट टाइम जॉब करने की सोची। अपने जानने वालों से ऐसी नौकरी मिलने पर मुझे बताने के लिए कहा। खैर, कुछ टाइम बाद मुझे मेरे एक दोस्त ने बताया, एक होटल में वेटर की नौकरी है। 5-6 घंटे वहां देने होंगे, जिसके तुझे 8-9 हजार रुपए मिल जाएंगे।
“वहां वेटरों को बहुत बेइज्जत किया जाता था”
दोस्त की बात सुनकर मैं तुरंत उस नौकरी के लिए तैयार हो गया। मैंने नौकरी के लिए शाम की शिफ्ट चुनी क्योंकि सुबह मैं प्रैक्टिस करता था। कुछ समय तो मैंने उस होटल में नौकरी की लेकिन लंबे समय तक मैं वहां काम नहीं कर पाया। वहां पर वेटर लोगों को बहुत बेइज्जत किया जाता था। उनको उल्टा-सीधा बोला जाता था। मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता था।
मेडल मिलने के बाद जीत की खुशी मनाते राम बाबू।
“परेशान होकर एक दिन मैंने नौकरी छोड़ दी”
गरीब होने के कारण हर कोई हमारा मजाक बनाता। होटल मालिक से शिकायत करो तो वो भी शांत रहने के लिए बोल देता। कहता, बात पर ध्यान नहीं काम पर ध्यान दो। इन सब बातों से परेशान होकर मैंने नौकरी छोड़ने की ठान ली। वहां पर काम भी बहुत ज्यादा करवाया जाता था। समय से ज्यादा देर वहां रुकना पड़ता था। जिसकी वजह से मेरे और काम रुक जाते थे। परेशान होकर एक दिन मैंने नौकरी छोड़ दी।
“मैंने सब कुछ छोड़कर तुरंत कैंप जॉइन कर लिया”
उसके बाद मैंने कोरियर पैक करने का काम किया। कुछ समय तो मैंने वो नौकरी की लेकिन मेहनत ज्यादा होने की वजह से मैं बार-बार बीमार पड़ जाता। सही से खाना भी नहीं खा पाता था। जिसके बाद मैं कुछ दिनों के लिए घर आ गया। मेरे गांव में उस समय एक स्पोर्ट्स कैंप लगा हुआ था।
ये मौका मेरे लिए एक वरदान जैसा था। वहां पर मेरे एक जानने वाले यादव सर भी थे। मैंने वहां जाकर उनसे बात की तो उन्होंने कैंप जॉइन करने के लिए कहा। मैंने सब कुछ छोड़कर तुरंत कैंप जॉइन कर लिया। उस समय मेरे घुटने में चोट लगी थी। जिसकी वजह से मैं सही से दौड़ नहीं पाता था। लेकिन मेरा सपना रेस में दौड़ना था।
“मैं 6 महीने की ट्रेनिंग के लिए बाहर चला गया”
तब उन्हीं सर ने मुझको समझाया कि एक बार तुम फील्ड चेंज करके देख लो। हो सकता है तुम्हारा काम आसान हो जाए। दौड़ न पाने की वजह से तुम दूसरे दरवाजे अपने लिए बंद मत करो। उनके कहने के बाद ही, मैं पैदल चाल में चला गया। वहां कुछ दिन सीखने के बाद मैं सैफई चला गया। वहां एक स्पोर्ट्स कॉलेज है। वहां के जूनियर बच्चों के साथ मैं 6 महीने की ट्रेनिंग के लिए बाहर चला गया।
रामबाबू घर वालों के साथ समय बिता रहे हैं। वो जल्द ही ट्रेनिंग पर फिर से लौटने वाले हैं।
“नेशनल तक जाने के लिए मुझे और पैसे लगेंगे”
वहां मैं सीनियर ऐज कैटेगरी में चला गया। अब सीनियर कैटेगरी में खेलने के लिए जाहिर सी बात है आपको अच्छे एथलीट के साथ ट्रेनिंग करनी पड़ेगी। जिसके लिए हम भोपाल चले गए। वहां मैंने सुरेंद्र पॉल सर के साथ मेरी ट्रेनिंग ली। लेकिन जैसे-जैसे मैं ऊपर बढ़ रहा था वैसे-वैसे पैसों की कमी हो रही थी। मैंने ये बात अपने घर में बोली कि नेशनल तक जाने के लिए मुझे और पैसे लगेंगे।
“मां पैसा जमा करती, फिर मुझे भिजवा देतीं”
तब मेरी मां ने गांव से दूध जमा करके खोया बनाना शुरू किया और उसको मंडी में बेचा। ऐसा करके वो मेरे लिए पैसा जमा करती और फिर मुझे भिजवा देतीं। इस तरह से मैंने अपनी ट्रेनिंग जारी रखी और नेशनल में मेडल भी जीता। इन्हीं सब के बीच कोरोना आ गया। मुझे भी घर आना पड़ा। उस समय हमारी स्थिति इतनी खराब थी कि घर में खाने के लिए कुछ नहीं था।
“मैं इंडिया के लिए ही खेल रहा हूं, जीत भी रहा हूं”
मैं, पापा और मां सब लोगों ने मनरेगा में काम किया। तब जाकर घर में सामान लाया गया। ऐसा कई महीनों चला फिर जैसे ही लॉकडाउन खत्म हुआ, मैं वापस भोपाल ट्रेनिंग के लिए चला गया। साल 2021 में मैंने 50 किलोमीटर में सिल्वर मेडल नेशनल में जीता था। फिर साल 2021 सितंबर में मैंने नेशनल में गोल्ड मेडल जीता। जिसके बाद मेरा इंडियन टीम में सलेक्शन हो गया। उसके बाद से मैं इंडिया के लिए ही खेल रहा हूं और जीत भी रहा हूं।
ये राम बाबू का परिवार है। राम बाबू के मां-पिता मजदूरी करते हैं।
“गरीबी-अमीरी खेल में जीत को तय नहीं करती”
अब मैं आगे वर्ल्ड कप की तैयारी करूंगा। ओलिंपिक गेम में हम ऐसा खेलना चाहते हैं कि सारे इंडियन हम पर गर्व करें। मैं सब लोगों से आखिरी में यही कहना चाहूंगा, गरीबी-अमीरी खेल में जीत को तय नहीं करती है। आपका जुनून आपको आगे ले जाता है जो मैंने अपने अंदर कभी खत्म नहीं होने दिया।
खुद पर भरोसा रखें, अपने लक्ष्य पर फोकस रखना चाहिए। जिंदगी में उतार चढ़ाव आते रहेंगे लेकिन आपके प्रयास आपको मंजिल तक पहुंचा देंगे…मेरा जिंदगी में बस एक सपना और है कि अपने मां-बाप को अच्छी जिंदगी देना और बहुत जल्द मैं वो पूरा करूंगा।
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”पक्का हौसला…कच्चा मकान, यहीं से भरी गई सफलता की उड़ान”, राम बाबू…वो नाम जिसके चर्चे आज विश्वभर में हैं। एशियन गेम्स में भारत के रेस वॉक खिलाड़ियों में मंजू रानी और राम बाबू ने ब्रॉन्ज मेडल जीतने में सफलता हासिल की। 35 किलोमीटर रेस वॉक मिक्स में इन दोनों ने मेडल जीता। इसके बाद से उनके संघर्षों की कहानी पढ़ लोग मोटिवेट हो रहे हैं। मनरेगा में मजदूरी से लेकर होटल में वेटर का काम और अब उनकी इस सफलता की हर कोई तारीफ कर रहा है। यहां पढ़ें पूरी खबर