जयपुर. 1998 से राजस्थान के सबसे अहम टाइगर रिजर्व रणथंभौर के लिए दिलो जान से मेहनत करने वाले एक वन्यजीव फोटोग्राफर, संरक्षणवादी, होमस्टे के मालिक और पूर्व नौकरशाह आदित्य ‘डिकी’ सिंह का बुधवार को 57 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. आदित्य ने अपनी पूरी जिंदगी बाघ और वन्यजीव संरक्षण के लिए समर्पित कर दी थी. उनके इन तरह अचानक जाने से वन्यजीव प्रेमियों में काफी दुख की लहर है. उनके पीछे उनके परिवार में उनकी पत्नी उद्यमी, मूर्तिकार और फैशन डिजाइनर पूनम सिंह और बेटी नायरा सिंह हैं.
रणथंभौर के पूर्व फील्ड डायरेक्टर वाय.के. साहू ने बताया कि डॉक्टरों ने कहा कि दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. शनिवार को उन्हें स्टेंट डाला गया था और वह इससे उबर रहे थे. मई 1966 में जन्मे आदित्य की पृष्ठभूमि विज्ञान में थी. उन्होंने इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल कर सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की और कुछ समय एक आईएएस अधिकारी के रूप में काम भी किया. उसके बाद उन्हें अपने काम से ज्यादा रुचि वन्यजीवों के संरक्षण में नजर आने लगी.
वह 1998 में रणथंभौर चले गए और अपना शेष जीवन वन्यजीव पर बनी फिल्मों और फोटोग्राफी पर काम करते हुए बिताया. वह हमेशा अपनी फोटोग्राफी में इस बात का ध्यान रखते थे कि वन्य जीव संरक्षण में किस तरह से मदद कर सकें. वह हमेशा ही संकट की परिस्थितियों में वन विभाग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे और कभी भी अपनी फोटोग्राफी को लेकर उनका नजरिया प्रोफेशनल नहीं रहा. उन्होंने हमेशा अपने काम को संरक्षण के लिए उपयोग करने में खुली छूट दी. आदित्य ने अवैध खनन को रोकने के लिए रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान की सीमा पर 35 एकड़ का जंगल बनाया था.
अवैध खनन को रोकने बनाया जंगल
उन्होंने एक छोटा पर्यटन व्यवसाय भी शुरू किया था. एक होमस्टे, जिसे अब रणथंभौर के बाहरी इलाके में रणथंभौर बाग कहा जाता है. हालांकि उनके जीवन की निर्णायक कृतियों में से एक रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान की सीमा पर 35 एकड़ का जंगल है, जिसे उन्होंने क्षेत्र में प्रचलित लकड़ी की कटाई और अवैध खनन को रोकने के लिए उगाया था. हालांकि उन्हें जमीन के लिए करोड़ों रुपये के आकर्षक प्रस्ताव मिले, लेकिन आदित्य कभी भी इसे छोड़ने के लिए सहमत नहीं हुए और आज तक यह एक गैर-व्यावसायिक संपत्ति बनी हुई है.
एसआरआई पैसे से की कई परिवारों की मदद
सीनियर आईएफएस अरिजीत बनर्जी के मुताबिक आदित्य का जाना उनके लिए निजी जिंदगी में बड़ा नुकसान है. बहुत नेक इंसान सच्चे पर्यावरण के प्रहरी थे. उनके जैसे बेहतरीन वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर बहुत कम देखने मिलते है. मैंने 20 साल से अधिक पुराना एक अच्छा दोस्त खो दिया है. बनर्जी आदित्य को बड़े दिल वाले व्यक्ति, जिसने समुदाय को वापस लौटाया के रूप में याद किया. वह रणथंभौर फील्ड स्टाफ और आसपास रहने वाले परिवारों की मदद के लिए हमेशा उत्सुक रहते थे. उन्होंने अपने बहुत से पुरस्कारों से जीते गए एसआरआई पैसे का उपयोग रणथंभौर के आसपास रहने वाले परिवारों के बच्चों की शिक्षा, भोजन, अस्पताल शुल्क (प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी) के भुगतान के लिए किए.
बाघों के संरक्षण के लिए किया काम
पूर्व वाइल्डलाइफ बोर्ड मेंबर बालेंदु सिंह के मुताबिक आदित्य सिंह को वाइल्डलाइफ की बहुत ही बारीक जानकारी थी. वह अपनी जिंदगी का सबसे ज्यादा समय हमेशा वाइल्डलाइफ के अध्ययन में बिताते थे. सुबह-शाम रोजाना जंगल जाना, जंगल से जुड़ी जानकारी को विभाग के साथ साझा करना और कोई भी समस्या होने पर उसके हल के लिए हमेशा आगे बढ़कर मदद करना उनकी आदत में शामिल रहा. वह जंगल और बाघों को बचाने में बाघों के कोरिडोर को बचाने के हमेशा पक्षधर रहे.
वन्य जीव फोटोग्राफी थी बेहद कमाल
रणथंभौर में उनके साथी रहे टाइगर वॉच के धर्मेंद्र खांडल ने कहा की आदित्य बहुत खुशमिजाज स्वभाव के व्यक्ति थे. रणथंभौर पर्यटन क्षेत्र में हर कोई उन्हें जानता था और उनसे जुड़ा हुआ था. उन्होंने वन विभाग की भी मदद की और वन्य जीव संरक्षण के लिए आदित्य हमेशा बहुत ही कठोर, मेहनती इंसान रहे. हर तरह के मुश्किल हालात में वह मदद के लिए आगे खड़े रहते थे. वन्य जीव फोटोग्राफी में उनका कोई सानी नहीं था, जिस तरह से उन्होंने अपने जीवन को पूरी तरह समर्पित कर दिया. उसी तरह से वन्यजीवों के लिए समर्पण का भाव दिखाने वाले लोग आजकल बहुत कम देखने में आते हैं. आदित्य का जाना वन्य जीव संरक्षण के लिए बड़ा नुकसान है. निजी तौर पर वह मेरे बहुत ही घनिष्ठ मित्र रहे और उनके जाने से मुझे निजी क्षति हुई है.
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FIRST PUBLISHED : September 07, 2023, 13:47 IST