मानवता की ऐसी मिसाल पेश की, जिसका हर कोई कायल! 15000 लावारिस लाशों को दिला चुके हैं मुक्ति, पढ़ें मुकेश मल्लिक की कहानी

धीरज कुमार/किशनगंज. वक्त की चोट जब दिल पर लगती है तो कई आदतें और ख्वाहिश बदल जाती है. ये बिहार के किशनगंज के महादलित बस्ती के रहने वाले मुकेश मल्लिक की कहानी है. मुकेश अब तक 15 हजार से ज्यादा लावारिस लाशों का स्वयं के हाथों से दाह संस्कार कर चुके हैं. इसकी शुरुआत 1990 में होती है. किशनगंज के मौजाबाड़ी में एक लाश अधजली मिली. उसे छोड़कर सब चले गए, उस लाश को देखने वाला कोई नहीं था. बस तभी से मुकेश ने यह प्रण लिया है कि हम वैसे हर लाश का दाह संस्कार करेंगे, जिसका कोई नहीं है.

तब से लेकर अब तक मुकेश 15000 से ज्यादा लाशों का दाह संस्कार कर चुका है. मुकेश का कहना है कि इस काम के लिए हमें सम्मान मिले चाहे ना मिले, हम अंतिम सांस तक लावारिस लाश का दाह संस्कार करते रहेंगे.

ऐसे बने लावारिस लाशों के मसीहा
Local-18 बिहार से बात करते हुए समाजसेवी मुकेश मल्लिक बताते हैं कि वर्ष 1990 में वह मौजाबाड़ी में वहां एक शव को देखा कि उसे अधजला छोड़ दिया था. इसे देखकर मुकेश काफी परेशान हो गए. शव को कोई पूछने वाला नहीं था. तभी मन में यह बात आई कि हर उस लाश का दाह संस्कार करेंगे, जिसका कोई नहीं है. किशनगंज में एक कहावत भी है जिसका कोई नहीं उसका मुकेश मल्लिक है. आगे वह बताते हैं कि 15 हजार से ज्यादा लावारिस लाश जला चुके हैं.

लाश को जलाने में खर्च पूछने पर मुकेश ने बताया कि किशनगंज समाज बहुत बड़ा है. कोई ना कोई कुछ ना कुछ दे देता. कोई कफ़न दे देता है, तो कोई लकड़ी, तो कोई घी. बाकी जलाने का काम हम करते हैं. तब तक जलाते हैं जबतक लाश पूरी तरह से जल ना जाए.

कोरोना में 400 लावारिस लाश का किया दाह संस्कार
मुकेश ने बताया कि कोरोना काल में जिस वक्त डेड बॉडी को छूना नहीं चाहते थे, उसे वक्त अपनी जान की परवाह किए बगैर 400 लावारिस लाशों को जलाया. हमें डर बिल्कुल भी नहीं लगता है. हम सर पर कफन बांध कर निकलते हैं. बाकी सब मां शेरावाली पर छोड़ देते हैं. कोरोना काल में ऐसे ही लावारिस लाश को जलाया, लेकिन फिर भी कोई सम्मान आज तक नहीं मिला. यह काम आखिरी सांस तक करेंगे.

30 वर्षों से कर रहें हैं यह नेक काम
मुकेश 30 वर्षों से लगातार लावारिस लाशों का दाह संस्कार कर चुके हैं, लेकिन उनके मन में एक कसक है कि इतने वर्षों से यह कार्य करने के बाबत भी एक पुरस्कार नहीं मिला. इस बारे में जब हमने मुकेश से पूछा तो उन्होंने बताया कि डीएम साहब हो या हमारे सांसद हो या मुख्यमंत्री आज तक हमें एक भी पुरस्कार नहीं दिया. फिर भी हम समाजिक काम कर रहे हैं. एक न एक दिन ऊपर वाले का करम होगा तो अवश्य मिलेगा.

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