ई बहुते रोचक घटना, महान योगी परमहंस योगानंद के मशहूर किताब “योगी कथामृत” में बा. परमहंस योगानंद के पिता भगवती चरण घोष बंगाल- नागपुर रेलवे (बी.एन.आर) में वाइस प्रेसिडेंट रहले. ऊ महान योगी लाहिड़ी महाशय (श्यामा चरण लाहिड़ी) के शिष्य रहले. ओह घरी देश में अंग्रेजी राज रहे. रेलवे प्राइवेट कंपनी चलावत रहे. सरकारी ना रहे. त एक दिन परमहंस योगानंद जिनकर संन्यास के पहिले नांव रहे मुकुंदलाल घोष रहे, अपना पिता जी से कहले कि हम घूमे खातिर बनारस जाए के चाहतानी. हमरा के अनुमति दीं.
अगिले दिन भगवती चरण घोष उनका के दू गो फर्स्ट क्लास के रेलवे के पास आ एक रुपया के नोट के एगो गड्डी देके कहले कि कहीं भाग जाए के कोसिस मत करिह. रेलवे के दू गो पास एसे कि पिता के मालूम रहे कि परमहंस योगानंद अपना कौनो दोस्त के संगे लियवले बिना कौनो यात्रा पर ना जात रहले. परमहंस जी धार्मिक पर्यटन में रुचि लेत रहले ह. पिता ना भागे के चेतावनी एसे दिहले कि परमहंस योगानंद साधु बने खातिर घर से बार- बार हिमालय का ओर भाग जासु. उनका बारे में साधु सन्यासी लोग पहिलहीं कहि देले रहे कि मुकुंद (परमहंस योगानंद के पारिवारिक नांव) सन्यासी बनिहें. अब हम मुकुंद ना लिखि के परमहंस योगानंद लिखि रहल बानी. जब परमहंस जी बनारस जाए लगले त उनकर पिता जी उनका के तीन गो चिट्ठी दिहले. कहले कि जब बनारस जाते बाड़ त हमरा मित्र आ संन्यासी प्रणवानंद जी से भेंट कके उनका माध्यम से हमरा एगो अउरी मित्र केदारनाथ बाबू के हमार चिट्ठी दे दीह. आ एगो चिट्ठी में तोहार परिचय बा. प्रणवानंद जी, केदारनाथ बाबू के बोलवा लींहें. हमरा लगे केदारनाथ बाबू के पता रहल ह बाकिर कहीं भुला गइल बा. बनारस उतरते परमहंस जी स्वामी प्रणवानंद के लगे पहुंचि गइले. प्रणवानंद जी एगो घर के दुमंजिला पर रहत रहले. स्वामी प्रणवानंद के स्थूलकाय शरीर रहे. ऊहो लाहिड़ी महाशय के शिष्य रहले.
परमहंस योगानंद के पिता भगवतीचरण घोष के गुरुभाई रहले स्वामी प्रणवानंद. प्रणवानंद एगो छोटहने लुंगी पहिर के पद्मासन में चौकी पर भव्यता से बइठल रहले. परमहंस जी पुछले- “रउरे स्वामी प्रणवानंद हईं?” स्वामी प्रणवानंद “हं” कहि के मुड़ी हिलवले आ पुछले- “तूं भगवती के बेटा हउव?” अभी त ऊ अपना पिता के चिट्ठी निकालि के उनका हाथ में देलहूं ना रहले. तब कइसे उनका मालूम हो गइल कि हम केकर बेटा हईं? तलहीं स्वामी प्रणवानंद बोलले- “तोहरा खातिर हम केदारनाथ बाबू के खोजि ले आइब.” परमहंस योगानंद अउरी चकित भइले. ई कइसे पहिलहीं जानि गइले कि हम काहें खातिर इनका लगे आइल बानी? अब त अपना पिता जी के चिट्ठी प्रणवानंद जी के देबे के कौनो जरूरत ना रहे. प्रणवानंद जी अगमजानी संत रहले. भूत, वर्तमान आ भविष्य के कुल घटना के बारे में ऊ जान सकत रहले ह. तबो परमहंस जी उनका के अपना पिता के लिखल चिट्ठी उनका हाथ में दे दिहले. चिट्ठी पढ़ि के प्रणवानंद जी गहिर ध्यान में डूबि गइले. आधा घंटा ध्यान कइला का बाद, उनकर आंखि खुलल त कहले कि केदारनाथ बाबू आधा घंटा में एह कमरा में पहुंचि जइहें. परमहंस योगानंद चकित भइले. प्रणवानंद जी कहीं गइले ना अइले, इनका कइसे पता चलि गइल कि केदारनाथ बाबू आधा घंटा में पहुंचि जइहें?
ठीक आधा घंटा बाद केहू के सीढ़ी चढ़े के आवाज आइल. स्वामी प्रणवानंद कहले- “लागता कि केदारनाथ बाबू आ गइले.” सचहूं केदारनाथ बाबू रहले. परमहंस योगानंद उनका लगे गइले आ पुछले – “रउरा कइसे जनलीं हं कि हम स्वामी प्रणवानंद किहां राउर इंतजार करतानी?” त केदारनाथ बाबू कहले- “हम गंगा नहा के कपड़ा पहिरलहीं रहनी हं तले स्वामी प्रणवानंद पता ना कइसे हमरा मौजूदा स्थान के पता लगा के घाट पर पहुंचि गउवन आ कहुअन कि भगवती के बेटा हमरा घरे तोहार इंतजार करता. चल. हम प्रणवानंद जी का संगे हाथ में हाथ डालि के चले लगुवीं. थोरहीं देर में ऊ खूब तेज चले लगुअन. अचानके ऊ पुछुअन कि तूं हमरा घरे कतना देर में अइब? हम कहुवीं कि आधा घंटा में. त स्वामी प्रणवानंद कहुअन कि ठीक बा हमरा कुछ काम बा, हम चलतानी. तूं हमरा घरे आव. कहि के हमरा से आगे निकल गउवन आ भीड़ में चलि गउवन. हइहे खड़ाऊं जौन उनका चौकी के नीचे राखल बा, पहिर के ऊ गंगा घाट पर गइल रहुअन.” परमहंस योगानंद जी के आश्चर्य के ठेकान ना. प्रणवानंद जी त लगातार हमरा संगे बइठल बाड़े. ई कइसे संभव बा कि ऊ गंगाघाट पर जा के केदारनाथ बाबू के बोलावे चलि गइले आ फेर घरे लवटि अइले? प्रणवानंद जी जानि गइले कि परमहंस योगानंद जी चकित बाड़े. ऊ कहले- “तूं एतना आश्चर्य मत कर. दृश्य जगत के सूक्ष्म एकता सच्चा योगी से छिपल ना रहेला. हम दूर कलकत्ता में रहे वाला अपना शिष्य लोगन का लगे भी छन भर में पहुंच सकेनी. आ हमार शिष्य भी ई काम क सकेला लोग.”
ओह घरी परमहंस जी के उमिर बारह साल के रहे. प्रणवानंद जी के व्याख्या से उनका मालूम भइल कि एगो साधक दू गो शरीर धारण क सकेला. एगो शरीर कमरा में बइठि के ध्यान कर सकेला आ दोसरका शरीर कहीं भी पहुंचि के केहू के कौनो संदेश दे सकेला भा कौनो जरूरी काम क सकेला. ओइसे त कुछ अउर साधु संत लोग अइसन चमत्कार कइले बा लोग. बाकिर परमहंस योगानंद अपना आंखि से कबो ना देखले रहले. ओह दिन ऊ स्पष्ट देखि लिहले.
स्वामी प्रणवानंद अपना जीवन के अंतिम समय में हिमालय में चलि गइले. ओइजे हरिद्वार का लगे एगो आश्रम बना के अपना शिष्य लोगन का संगे रहे लगले. अपना जीवन के अंतिम दिने कई हजार लोगन के सात्विक भोजन करवले आ सारगर्भित प्रवचन देके हजारन लोगन के सामने मंच पर योग के एगो गुप्त क्रिया से आपन प्राण त्याग दिहले. सब अवाक. प्राण छोड़े के पहिले अपना शिष्य लोगन के ईहो बता गइले कि लोक कल्याण खातिर उनकर अगिला जनम कहां होई. बाकिर उनकर शिष्य लोग ई भेद केहू से ना बतावल. महान संत लोगन के महिमा अपरंपार बा.
(डिसक्लेमर – वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं.)
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Tags: Bhojpuri article, Varanasi Temple
FIRST PUBLISHED : September 05, 2023, 16:05 IST