लंदन5 मिनट पहले
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ब्रिटेन में नर्सों ने कथित तौर पर एक सिख मरीज की दाढ़ी को प्लास्टिक के ग्लवज से बांधा और उसे बाथरूम तक नहीं जाने दिया, इस कारण मरीज ने वहीं पेशाब की जहां वो बैठा था। इतनी ही नहीं सिख मरीज को ऐसा खाना दिया गया जो वह धार्मिक वजहों से नहीं खा सकता था।
‘द इंडिपेनडेंट न्यूजपेपर’ की रिपोर्ट के मुताबिक, मरीज ने इसकी शिकायत ब्रिटेन के नर्सिंग नियामक- नर्सिंग और मिडवाइफरी काउंसिल (NMC) से की। बावजूद इसके नर्सों पर कार्रवाई नहीं हुई। हालांकि, खबर सामने आने के बाद काउंसिल अब इस मामले में जांच कर रही है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, NMC के पास रंगभेद-नस्लभेद से जुड़ा पहला मामला 2008 में दर्ज किया गया था। पिछले 15 सालों में काउंसिल के पास ऐसे कई मामले दर्ज हुए लेकिन अब तक इन पर कार्रवाई नहीं हुई है। यानी कथिक तौर पर आरोपी नर्सों को काम करने दिया जा रहा है।
NMC चीफ एंड्रिया सटक्लिफ ने कहा कि रेसिज्म से जुड़े मामलों की जांच होगी।
ब्रिटिश PM सुनक ने भी रंगभेद सहा
दिसंबर 2022 में भारतीय मूल के ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कहा था- मैंने बचपन में रंगभेद का सामना किया है। तब और बुरा लगता था, जब छोटे भाई-बहनों के सामने इस तरह का बर्ताव होता था। रंगभेद मामलों पर उन्होंने कहा- सिर्फ कुछ शब्द ही कहे जाते थे। लेकिन, वो जितने चुभते थे, उतनी कोई चीज नहीं चुभ सकती। ये लफ्ज आपके कलेजे को छलनी कर देते हैं। एक अल्पसंख्यक समूह होता है। वो हमेशा यह मानकर चलता है कि उनके साथ नस्लभेदी रवैया अपनाया जा रहा है।
ब्रिटिश सरकार ने माना- भारतीयों के साथ नस्लीय भेदभाव हो रहा
ब्रिटेन में नीतियों का आंकलन करने वाली सरकार की ही एक रिपोर्ट में स्वीकार किया गया कि दक्षिण एिशयाई लोगों विशेषकर भारत से आने वाले प्रवासियों से भेदभाव हो रहा है। एक सरकारी अफसर ने दैनिक भास्कर से बातचीत में माना कि अवैध रूप से ब्रिटेन में रहने वाले लोगों को चिह्नित करने में कड़ी नीतियां ज्यादा असरदार नहीं रही हैं। प्रवासी मामलों से जुड़ी ज्यादातर सरकारी एजेंसियां रंग के आधार पर ही फैसले कर लेती हैं।
ब्लैक लाइव्स मैटर को लेकर ब्रिटेन में अक्सर प्रदर्शन देखने को मिलते हैं। बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिन्हें लगता है कि अश्वेतों के साथ सही व्यवहार नहीं होता है।
58% अश्वेत मानते हैं कि सरकार रेसिस्ट है
- ब्रिटेन की मौजूदा सरकार (कंजर्वेटिव पार्टी) को लेकर भी लोगों ने अपनी राय रखी। 58 फीसदी अश्वेत ऐसा मानते हैं कि सरकार इंस्टीट्यूशनली रेसिस्ट है, जबकि 39फीसदी श्वेत इनसे सहमत हैं। वहीं अगर विपक्ष की लेबर पार्टी को लेकर इनका मत देखें तो करीब 31 फीसदी अश्वेत मानते हैं कि यह इंस्टीट्यूशनली रेसिस्ट है, जबकि इनसे सहमत होने वाले श्वेतों की संख्या 34 फीसदी है।
- करीब 64 फीसदी अश्वेतों का मानना है कि यूनाइटे़ड किंगडम (यूके) ने ऐतिहासिक नस्लीय अन्याय को काफी कम एड्रेस किया है, जबकि 35 फीसदी श्वेत इनसे सहमत हैं। वहीं, करीब 27% अश्वेतों को लगता है कि यूके ने नस्लीय अन्याय को कम करने के लिए बहुत कुछ किया है। इनसे सहमत होने वाले श्वेत वर्ग के लोगों की संख्या 54 फीसदी है।