अभिनव कुमार/दरभंगा. मिथिलांचल में दमाद का विशेष महत्व है. इनकी खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है. इनके लिए खास तरह का भोजन भी बनाया जाता है. इसमें से एक है तिलकोर है. महिला मालती देवी की मानें तो इसको खास जंगल से चुना जाता है. इसकी खेती नहीं होती है. यह प्रकृति की ओर से मिलता है. इसका मिथिलांचल में काफी महत्व है, क्योंकि दामाद को मिथिलांचल में विशिष्ट अतिथि का दर्जा दिया गया है. आइए जानते हैं इस खास व्यंजन को.
मालती देवी आगे बताती हैं कि मिथिलांचल में दामाद के सामने कितने भी व्यंजन क्यों न परोस दिए जाएं, उसमें अगर तिलकोरका तरूआ नहीं है, तो अतिथि सत्कार में कमी मानी जाती है. तिलकोर का तरूआ बेहद ही खास होता है. जितना यह देखने में खूबसूरत होता है उतने ज्यादा खाने में टेस्टी भी होता है. यहां के लोग इसे बनाते भी हैं बहुत शौक से और खाते भी है बहुत शौक से. करंची होने की वजह से यह तरुआ अपने आप में बेहद ही खास हो जाता है. माना जाता है कि अगर अतिथि सत्कार के भोजन के तमाम व्यंजनों में अगर तिलकोर का तरुआ नहीं है तो संपन्न परिवार में आपका अतिथि सत्कार नहीं हो रहा है.
ऐसे बनता है यह बेहद खास तरूआ
मामूली सा दिखने वाला यह पत्ता जंगल और झाड़ियां में मिलता है. महिला मालती देवी का कहना है कि इसे बनाना बेहद ही आसान है. तिलकोर के पत्ते की सब्जी भी बनती है और तरुआ भी बनता है. खासकर दामाद के लिए इसका तरुआ बनाया जाता है जो बहुत ही कुरकुरा होता है.सबसे पहले चावल को पीसकर उसका पिठार बनाया जाता है. फिर हल्दी के साथ कुछ मसाला से पेस्ट तैयार किया जाता है. फिर उसमें तिलकोर के पत्ते को सानकर तेल में तला जाता है. इसे खाने से कई बीमारियों से निजात भी मिलती है.
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FIRST PUBLISHED : September 19, 2023, 10:50 IST