बुंदेलखंड में रक्षाबंधन के अवसर होता है कजलिया महोत्सव, जानिए क्या है इतिहास

प्रिंस भरभूजा/ छतरपुर: वैसे तो समूचे बुंदेलखंड में कजलिया महोत्सव मनाया जाता है, लेकिन मध्यप्रदेश के छतरपुर और उत्तरप्रदेश के महोबा में कजलिया महोत्सव की खासी धूम रहती है. छतरपुर में इसे लेकर तरह-तरह के आयोजन किए जाते हैं.

छतरपुर जिले के गढ़ीमलहरा नगर में रक्षाबंधन के अवसर पर कजलिया महोत्सव को मनाकर स्थानीय लोगों ने अपनी संस्कृति एवं विरासत को संजोए रखने का प्रयास किया है. चंदेल सेनाओं की इसी दिन विजय हुई थी इस कारण इसको वीरता का प्रतीक माना जाता है और इस अवसर पर दंगल का आयोजन भी होता हैं.


प्रतियोगिता का आयोजन
छतरपुर में गढ़ीमलहरा नगर परिषद के द्वारा दंगल प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया, जिसमें दूर दराज से आए पहलवानों ने जोर आजमाइश की इस मौके पर मध्यप्रदेश शासन के पूर्व मंत्री मानवेंद्र सिंह भंवर राजा मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे. इस कार्यक्रम में आए पहलवानों को इनाम राशि देकर सम्मानित भी किया गया.

कजरी महोत्सव का इतिहास
बुंदेलखंड में मनाए जाने वाले कजरी महोत्सव को लेकर इतिहासकार बताते हैं कि चंदेल सेना केकीरत सागर में भीषण युद्ध के दौरान विजय श्री के रूप में इस महोत्सव की शुरुआत हुई दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान ने रक्षाबंधन के दिन अपने सेनापति को महोबा पर हमला करने का आदेश दिया राजा के आदेश पर सेनापति चामुंडा ने महोबा पर हमला कर दिया इसी दौरान चंदेल सेना के सेनापति आल्हा और उदल जिनको एक महिला के कहने पर राज्य से बाहर निकाल दिया गया था, वह साधु भेष में आए और पृथ्वीराज चौहान की सेना के दांत खट्टे कर दिए.

कजलिया का आयोजन
इस युद्ध में चंदेल सेना को जीत मिली इसी की खुशी में कजरी महोत्सव का आयोजन प्रत्येक वर्ष किया जाता है जिसकी धूम बुंदेलखंड के महोबा जिले के आसपास के क्षेत्र में भी परंपरागत रूप से देखने को मिलती है और इसी के साथ अन्य बुंदेली विधाओं को भी आगे बढ़ने का कार्य किया जाता है.

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