बिहार का यह गांव तीन पीढ़ियों से कर रहा है सामूहिक खेती, एकता की कर रहा है मिसाल पेश

कुंदन कुमार/गया. कहा जाता है समूह में बड़ी ताकत होती है और समूह में कोई काम किया जाता है तो वह बड़ी आसानी से हो जाती है. आपस में समूह बनाकर किसान यदि खेती करें तो इसका परिणाम गुणात्मक तौर पर सामने आएगा. बिहार के गया जिले में आज भी सामूहिक खेती के परंपरा जारी है. दरअसल जिले के आमस प्रखंड के महादलित टोला गोवर्धनपुर गांव में 20 परिवार के द्वारा लगभग 35 एकड़ जमीन पर सामूहिक खेती की जा रही है. जिसमें मत्स्यपालन, धान, गेहूं, अरहर, चना, तिल, मडुवा आदि की खेती की जाती है.

सामूहिक खेती से गांव के लोगों को हो रही है अच्छी कमाई

गांव में पिछले तीन पीढ़ी से सामूहिक खेती की जा रही है और जो भी फसल का उत्पादन होता है. उसे बेचकर पैसे इकट्ठे होते है, उसका इस्तेमाल जंगल और पहाड में स्थित उबड़-खाबड़ जमीन को समतल कराने में लगाते है. पहाड़ के तलहटी में उबड़-खाबड़ जमीन को समतल कर गांव के लोग लगभग 80-100 एकड़ पर कब्जा कर रखा है. जिसमें 35 एकड़ जमीन का परवाना है. पहले 14 परिवार के द्वारा खेती की जाती थी लेकिन पिछले कुछ साल से 6 परिवार और जुड गये हैं. सामूहिक खेती से गांव के लोगों को अच्छी कमाई हो रही है और खेती में आत्मनिर्भर बन गये हैं.

पिछले 15 साल से मत्स्य पालन भी कर रहें हैं

गांव के लोग पिछले 15 साल से मत्स्य पालन के कार्य से जुड़े हुए हैं. पहाड़ के पानी को रोककर सात बड़े तालाब का निर्माण किया. उसमें मछली पालन कर रहे हैं. मछली पालन से साल में लगभग ग्रामीणों को 2 लाख रुपये की आमदनी होती है. इसके अलावे अन्य फसलों से भी ग्रामीणों को अच्छी आमदनी हो जाती है. तालाब के निर्माण से ग्रामीणों को दो फायदा हो जाता है. पहला मत्स्य पालन जबकि दूसरा इससे इनके खेत तक पानी आसानी से पहुंच जाता है.

लगभग 100 एकड़ जमीन पर विभिन्न तरह के फसल हैं लगाते

गांव के रहने वाले दिलीप रिकियासन और फिरंगी मांझी बताते हैं कि पिछले तीन पीढ़ी से इस गांव में सामूहिक खेती की जा रही है. कभी किसी में कोई विवाद नहीं हुआ है. छोटा-मोटा विवाद होने पर आपस में सुलझा लिया जाता है. सामूहिक खेती से जो भी आमदनी होती है. उसे आपस में बंटवारा कर लेते हैं. सामूहिक खेती में यह फायदा होता है कि काम बड़े आसानी से हो जाता है. ग्रामीणों ने बताया कि लगभग 100 एकड़ जमीन पर विभिन्न तरह के फसल लगाते हैं. जिसमें मत्स्य पालन किया जाता है. 14 परिवार को प्रति परिवार ढाई एकड़ जमीन परवाना में मिला था, लेकिन अब 20 परिवार जुड गये हैं.

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