बिहार का यह उत्पाद अब विदेशों में बिखेरेगा जलवा…सरकार ने दिया GI टैग, मालामाल होंगे किसान

आशीष कुमार/पश्चिम चम्पारण. GI टैग की लिस्ट में चंपारण के मर्चा धान को शामिल कर लिया गया है. इस प्रकार बिहार का एक और उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पहचान बनाने को तैयार है. सूबे के पश्चिम चम्पारण जिले के कुछ प्रखंडों में उपजने वाले मर्चा धान को शनिवार को केंद्र सरकार ने ज्योग्राफिकल इंडिकेशन का टैग दे दिया.

GI टैग मिलने के बाद यहां के किसानों में हर्ष का माहौल है. अब उन्हें इस खास फसल की अच्छी कीमत मिल पाएगी. ऐसे में किसान भी इसकी पैदावार पर विशेष ध्यान देंगे. बता दें कि इससे पहले बिहार के पांच कृषि उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है. इसमें मुजफ्फरपुर की लीची, भागलपुर का जर्दालु आम, कतरनी चावल, मिथिला का मखाना इत्यादि शामिल हैं.

मर्चा धान को मिला जीआई टैग


अब मर्चा धान को जीआई टैग मिलने के बाद बिहार के कृषि उत्पादों की संख्या पांच से बढ़ कर छह हो गई है. केंद्र सरकार के जीआई रजिस्ट्री कार्यालय चेन्नई की ओर से जारी प्रमाण-पत्र को शनिवार को समाहरणालय के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में मर्चा धान उत्पादक सहयोग समिति के अधिकारियों एवं सदस्यों को प्रदान किया गया.

वहीं, जीआई रजिस्ट्रार ने जिला प्रशासन को भी इसका प्रमाण-पत्र प्रेषित किया है. जिलाधिकारी दिनेश कुमार राय ने बताया कि मर्चा धान बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में स्थानीय रूप से पाए जाने वाले चावल की एक किस्म है. चूंकि यह काली मिर्च की तरह दिखाई देता है, इसलिए इसे मिर्चा या मर्चा राइस के नाम से जाना जाता है.

इन प्रखंडों में होती है मर्चा धान की खेती

चनपटिया चूड़ा मिल के मालिक रामजी प्रसाद और अन्य जानकारों के अनुसार पश्चिम चंपारण जिले के 18 में से सिर्फ छह प्रखंडों को ही सुगंधित मर्चा धान के उत्पादन के लिए उपयुक्त माना जाता है. हालांकि, इसका उत्पादन अन्य प्रखंडों में भी होता है, लेकिन उसकी गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं होती है.

खास बात है कि अगर अच्छी फसल हुई तो एक हेक्टेयर में 20-25 क्विंटल तक धान का उत्पादन होता है. बता दें कि, जिले केनरकटियागंज, गौनाहा, सिकटा और मैनाटांड़ प्रखंडों के 500 किसान लगभग 1,100 एकड़ में मर्चा धान की खेती करते हैं.

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