बड़े ठाठ हैं बड़ी कोठी की दुर्गा माई के! यहां हांडी में प्रसाद चढ़ाने पर पूरी होती है मनोकामना

धीरज कुमार/किशनगंज : किशनगंज शहर के गुदरी बाजार स्थित शहर की सबसे प्राचीन बड़ी कोठी में दुर्गा जी का मंदिर स्थित है. जो कि 120 वर्ष पुराना है. बड़ी कोठी में दुर्गा मंदिर की स्थापना कसेरापट्टी निवासी व्यवसायी जगन्नाथ थिरानी ने 1903 में कराया था. तब से लेकर अब तक यहां हर वर्ष लगातार दुर्गा पूजा बहुत ही धूमधाम से मनाई जा रही है.

वहीं दुर्गा मंदिर में नवरात्र के उत्सव को लेकर पूजा अर्चना की तैयारी भी शुरू हो चुकी है. मंदिर की मान्यताएं हैं नौवीं दुर्गा पूजा के दिन हांडी के बरतन में प्रसाद चढ़ाने पर मां दुर्गा भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती है. मिट्टी के बर्तन में प्रसाद चढ़ाने का रिवाज सदियों पुराना है. वहीं शहर का सबसे प्राचीन मंदिर होने के कारण नवरात्रि दुर्गा पूजा में अष्टमी के दिन भक्तों की सर्वाधिक भीड़ इसी मंदिर में उमड़ती है.

मिट्टी की हांडी में यहां चढ़ाया जाता है प्रसाद

Local-18 बिहार से बात करते हुए बड़ी कोठी दुर्गा मंदिर के पुजारी मंतोष पांडेय ने बताया कि यह शहर का सबसे प्राचीन मंदिर है. इसकी स्थापना शहर के व्यवसायी जगन्नाथ थिरानी ने की थी. वही इस मंदिर की मान्यता यह है कि यहां पर मिट्टी की हांडी में प्रसाद चढ़ाने पर भक्तों की सभी मुराद बड़ी दुर्गा मां पूरी करती है. शहर में बड़ी दुर्गा मां के नाम से भी इस मंदिर को जाना जाता है.

बड़े धूमधाम से मनाया जाता है यहां नवरात्रि

वहीं दुर्गा पूजा मूर्ति विसर्जन के दिन सबसे पहले मूर्ति यही से निकलती है यानी माता जब तक अपना स्थान नहीं छोड़ती है, तब तक शहर के अन्य मंदिरों से दुर्गा माता की मूर्ति नहीं निकलती है. नवरात्रि में अष्टमी के दिन सर्वाधिक भीड़ बड़ी कोठी दुर्गा मंदिर में रहती है. वहीं बंगाल से सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण किशनगंज का दुर्गा पूजा बिहार के अन्य शहरों की तुलना में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है.

मिट्टी की हाड़ी में प्रसाद चढ़ाने का रिवाज

बड़ी कोठी मां दुर्गा मंदिर मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां पर अष्टमी के दिन मिट्टी के हांडी में बनी प्रसाद चढ़ाई जाती है. ऐसी मान्यता है की मिट्टी की हड्डी जो की शुद्ध भी होती है, वहीं मिट्टी की हांडी की प्रसाद चढ़ाने से बड़ी कोठी दुर्गा मां भक्तों से प्रसन्न होती है. उनकी सभी मुरादे पूरी करती है या रिवाज सदियों से चला आ रहा है.

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