कमल पिमोली/पौड़ी गढ़वाल. सनातन धर्म और आस्था के प्रतीक कई ऐसे पौराणिक मठ मंदिर हैं जिनका ऐतिहासिक महत्व होने के साथ-साथ स्थानीय मान्यताएं भी हैं. एक ऐसा ही मंदिर पौड़ी जिला मुख्यालय में मौजूद है. यह मंदिर नाग देवता को समर्पित है, यहां नाग देवता की पूजा की जाती है. इसलिए मंदिर का नाम भी “नागदेव मंदिर” पड़ा है. पौड़ी जिला मुख्यालय से महज तीन से साढ़े तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित नागदेव मंदिर स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र बिंदु है, साथ ही मंदिर और डोभाल जाति के लोगों को लेकर कई कहानी भी है. वहीं यह मंदिर गढ़वाल क्षेत्र में नागवांसियो की मौजूदगी का भी प्रमाण देता है.
पौड़ी जिले में कंडोलिया मैदान से बुवाखाल वाले रास्ते पर देवदार के घने जंगलों के बीच नागदेव मंदिर मोजूद है. मंदिर का इतिहास 200 साल पहले का बताया जाता है. देवदार, बांज, बुरांश के जंगल होने के कारण यहां वातावरण काफी ठंडा रहता है, जिस कारण यहां श्रद्धालु गर्मी से निजात पाने भी आते हैं.
डोभाल परिवार में “नागदेव” ने लिया था जन्म
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज से लगभग 200 वर्ष पूर्व डोभ-गांव (डोभ श्रीकोट) के डोभाल वंश में एक बालक का जन्म हुआ. इस बालक का ऊपरी हिस्सा मनुष्य का था और कमर से नीचे का हिस्सा सांप के आकार का था, यह बालक जन्म से ही प्रत्यक्ष भाषित था कि यह नाग का रूप है. अपने जन्म के बाद बालक ने अपने पिता से कहा कि मुझे कालू का डांडा (लैंसडाउन) क्षेत्र में भैरवगढ़ी मन्दिर के पास एक स्थान पर ले चलो ओर वहां स्थापित कर दो. साथ ही नाग रूपी बालक ने कहा कि भैरवगढ़ी मंदिर ले जाने तक जिस कंडी में मुझे लेकर जाओगे उसे किसी भी स्थान पर नीचे ना रखा जाएं.
बताया जाता है कि डोभाल वंश, गर्ग गोत्र के लोग बालक को कण्डी में लेकर गन्तव्य की ओर डोभ-गांव, प्रेमनगर, चोपड़ा, झण्डीधार होते हुए निकल पड़े. यहां झण्डीधार से थोड़ा नीचे उन्होनें भूलवश कण्डी को जमीन पर रख दिया, जिसके बाद नाग रूपी बालक ने सभी लोगों से कण्डी को छूने और उठाने से इन्कार कर दिया. इसके बाद बालक ने वहां मौजूद लोगों से कुछ दूरी पर जमीन खोदने का आदेश दिया, नाग रूपी बालक की ओर से बताए गए स्थान पर खुदाई करने पर एक शीतल जलधारा निकली. जिसके बाद यहां बालक को स्नान कराकर वहीं स्थापित कर दिया गया. तब से ही यह स्थान नागदेव कहलाने लगा. यहां जिस स्थान पर नाग रूपी बालक ने खुदाई करने को कहा था. वहां से उपजा प्राकृतिक जल स्रोत आज भी मन्दिर के समीप ही स्थित है, यहां श्रद्धालु अपनी प्यास बुझाते हैं.
साक्षात नागदेव हैं विराजमान
मंदिर समिति के सदस्य हरीश गैरोला बताते हैं कि नागदेवता के इस मन्दिर की स्थापना के बारें में लोगों के अलग-अलग मत हैं, बताते है कि आज भी कोमल हृदय एवं अटूट श्रद्धा से जाने वाले भक्तों को नागदेवता अपने दर्शन देते हैं. यहां नाग देव के होने का आभास भी प्रकट होता है. यहां नागदेव मंदिर के पुजारी प्रतिदिन एक कटोरे में दूध रख देते हैं और यह कटोरा कुछ समय बाद खाली हो जाता है. यहां जिस चीड़ के पेड़ के नीचे नागदेव का मंदिर स्थापित है. वह पेड़ ऐसा लगता है मानो ऊपर से नाग की तरह फन फैलाए हुए हो. अक्सर देखा जाता है कि चीड़ के पेड़ सीधे होते हैं, लेकिन इस पेड़ की ऐसी बनावट भी श्रद्धालु को आस्था से जोड़े हुए है.
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FIRST PUBLISHED : September 01, 2023, 16:59 IST