आकाश गौर/मुरैना. जिले के गांव बदरपुरा में बना सती माता का मंदिर पत्नी के पति प्रेम को दर्शाता है. यहां माता अपने पति के साथ ही जलकर सती हो गई थी, जिसके बाद उनका मंदिर उसी समय 1100 वर्ष पूर्व बदरपुरा गांव में बनवाया गया था. इसका जीर्णोद्धार वर्ष 1996 से लेकर 1999 तक चला. खास बात यह है कि मंदिर में पूजा अर्चना के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं.
रोचक है गांव की कहानी
प्रचलित कथा के अनुसार, मंदिर के पुजारी ने बताया कि गांव खिटौरा में एक लड़की जन्म हुआ और वह लड़की जब शादी योग्य हो गई तो उनकी शादी बदरपुरा गांव में कर दी गई. जब इनके पति का युवा अवस्था में ही देहांत हो गया, उस समय लड़की अपने मायके में गोबर के कंडे थाप रही थी. अचानक पता चला कि उनका पति अब इस संसार में नहीं रहा. जब वह कंडे थाप रही थी तो कंडे थापते-थापते अचानक हाथ में गोबर का नारियल बन गया और उस नारियल को हाथ में लिए ही अपने ससुराल की ओर चल पड़ी. पति को चिता पर लेटे हुए देख स्वयं भी बैठे गई और सती हो गई. इस कारण वह सती माता कहलाने लगी. खास बात यह है कि जो हाथ में नारियल था वह आज भी मंदिर में रखा हुआ है. जब माता का मेला लगता है तो यह नारियल अपने आप बजने लगता है.
हर वर्ष लगता है यहां मेला
बदरपुरा गांव में हर वर्ष मेला लगता है, जिसमें जिले से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. बताया जाता है कि यह माता त्यागी समाज की मानी जाती है. इस समुदाय के लोग सबसे ज्यादा इस मेले में पहुंचते हैं.
यहां मेले के दिन होती है सगाई
यहां इस मेले के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु तो आते ही हैं, लेकिन यहां सबसे खास बात यह है कि इस मेले में मंदिर प्रांगण में लोग अपने बच्चों की सगाई-संबंध भी करते हैं. बताया जाता है कि यहां जब भंडारा होता है, उस दिन आस पास के 45 गांव में खाना नहीं बनता है और यहां विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है.
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FIRST PUBLISHED : October 8, 2023, 17:22 IST