पति की खातिर इन महिलाओं ने जंगल में शुरू किया ऐसा कारोबार, आज घर बैठे कर रहीं कमाई

आशीष कुमार/ पश्चिम चम्पारण. हमारे पति परदेस जाकर मजदूरी न करें, इसलिए हमने खुद ही रोजगार का एक जरिया बना लिया है. बहुत जल्द हम इसे बड़े स्तर तक लेकर जाएंगे, जिसके बाद हमारा पूरा परिवार एक साथ रहेगा’. ये वाक्य गौनाहा प्रखंड के दोमाठ गांव के थारू समाज की महिलाओं का है, जिसे अब भी अविकसित समझा जाता है. लेकिन यहां की महिलाओं ने कुछ ऐसा कर दिखाया है, जिसकी चर्चा पूरे जिले में हो रही है. दरअसल,दोमाठ गांव में पूरी तरह से जंगल में बसा है. यहां की आदिवासी महिलाओं ने एक संगठन बनाकर गांव में ही अगरबत्ती बनाने और उसे बेचने का कारोबार शुरू कर दिया है. आज इस संगठन में 26 महिलाएं हैं. यहां की लक्ष्मी कहती हैं कि अब हमलोग एक साथ रह पाते हैं.

महीने दिन में बिक जाते हैं 5 हजार डब्बे

कम्यूनिटी की सदस्य संजना ने बताया कि एक महीने में 5 हजार डिब्बा अगरबत्ती बिक जाता है. एक डब्बे की कीमत महज 10 रुपए होती है, जिसमें 14 स्टिक्स होते हैं. खास बात यह है कि एक डब्बे को बनाने में ज्यादा से ज्यादा 6 रुपए कॉस्ट आता है, जिसे 4 रुपए मुनाफे पर बेच दिया जाता है. संगठन की महिलाओं की माने तो अगरबत्ती बनाने का सारा काम फिलहाल हाथों से ही किया जा रहा है. इसलिए बड़े स्तर पर उत्पादन में परेशानी आ रही है.

ऐसे बनाती हैं अगरबत्ती

कम्यूनिटी सदस्य संजना ने बताया कि उनकी कम्यूनिटी को अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण मार्ग नामक एनजीओ से मिला है. एनजीओ ने मास्टर ट्रेनर शुभम से मिलकर महिलाओं को अगरबत्ती बनाने का प्रशिक्षण दिया. बकौल संजना अगरबत्ती बनाने के लिए कुछ खास चीजों का इस्तेमाल किया जाता है. इनमें अच्छी क्वालिटी का चारकोल, वुड डस्ट और गम पाउडर है. चारकोल, वुड डस्ट और गम पाउडर को एक खास अनुपात में मिलाकर उसे आटे की तरह गूथ लिया जाता है. फिर उसे बांस की पतली तीली में लपेटकर ऊपर से हल्का चारकोल लगा, करीब 3 घंटे तक छांव में सुखाया जाता है. इसके बाद तैयार अगरबत्ती को अलग-अलग फ्रेगनेंस वाले लिक्विड में डूबोकर 3 घंटे तक सुखाया जाता है और फिर अंत में पैक कर बाजार में बेचा जाता है.

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