नकुल कुमार/पूर्वी चम्पारण/पूर्वी चंपारण में किसान जहां एक ओर परंपरागत खेती कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर नई-नई तरीके से फसलों की खेती का ट्रायल भी कर रहे हैं. उन फसलों के लाभ-हानि जानने के बाद अधिक मुनाफा को देखते हुए बड़े स्तर पर खेती करने लगे हैं. इस काम में उद्यान विभाग की क्रियाशीलता और कृषि विज्ञान केंद्र का मार्गदर्शन किसानों के लिए रामबाण साबित हो रहा है. जिले के तुरकौलिया प्रखंड के मथुरापुर पंचायत के अमवा गांव के रहने वाले किसान विजय कुमार ने भी परंपरागत खेती से इतर देसी मटन के नाम से विख्यात ‘ओल’ की खेती की है. ओल को जिमीकंद और सूरन के नाम से भी जाना जाता है.
किसान कहते हैं कि “ओल” की खेती के लिए उन्हें जिला उद्यान विभाग के द्वारा फ्री में बीज उपलब्ध कराया गया. जिससे उनकी शुरुआती लागत में कमी आ गई. पूरे फसल के दौरान कुल खर्च मात्र 20 हजार आया. इस बार उन्होंने 5 कट्ठा में ओल की खेती की है. वे बताते हैं कि ओल की खेती 7 से 8 महीने की है, लेकिन अच्छा मुनाफा कमाने के उद्देश्य से वे 6 महीना में ही ओल को मिट्टी से निकाल लेते हैं.लोकल स्तर पर डेढ़ सौ रुपए पसेरी (पांच किलो) या 3000 रुपए क्विंटल का रेट मिल जाता है. वहीं बाजार में 5000 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बिकता है.
ओल का लालमोहन और समोसा प्रसिद्ध
किसान विजय कुमार बताते हैं कि ओल प्रोटीन से भरी ताकतवर सब्जी होती है. यही एक सब्जी है जिसमें खाद का इस्तेमाल ना के बराबर किया जाता है. किसान बताते हैं कि ओल से तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं. जहां एक और ओल की सब्जी बनाई जाती है, तो वहीं ओल का समोसा, ओल का लालमोहन मिठाई, ओल का हलवा भी खूब प्रसिद्ध है.
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FIRST PUBLISHED : September 07, 2023, 09:56 IST