हाइलाइट्स
कोरबा के सुभाष चौक के पास 9 करोड़ की लागत से बना वूमन हॉस्टल.
कामकाजी महिलाओं के लिए बनाया गया 200 सीटों वाला वूमन हॉस्टल.
हॉस्टल में रहने को केवल एक आवेदन, खरीदे जा रहे लाखों के फर्नीचर.
कोरबा. डीएमएफ फंड का जिस तरह मनमाना खर्च हो रहा है उससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि शासी परिषद् कितनी गंभीर है. सुभाष चौक के पास डीएमएफ मद से नौ करोड़ की लागत से वूमन हॉस्टल बनाया गया. सपना दिखाया गया कि शहर में जितनी भी कामकाजी महिला बाहर किराए के मकानों में रह रहे हैं उन्हें कम खर्च में अच्छी सुविधा मिलेगी. भवन बनने के बाद महिला एवं बाल विकास विभाग ने महिलाओं से आवेदन मंगाया. पहली और दूसरी बार किसी ने आवेदन नहीं दिया. तीसरी बार आवेदन मंगाने पर एक महिला ने अर्जी दी. करीब दो सौ सीट वाले हॉस्टल के लिए महज एक महिला के अर्जी देने के बाद ही यह स्पष्ट हो गया कि वूमेन हॉस्टल का उद्देश्य सार्थक नहीं हो सका. करीब आठ महीने बाद अब अचानक लाखों की लागत से वूमन हॉस्टल के लिए फर्नीचर खरीदी की जा रही है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि इन फर्नीचर का उपयोग कौन करेगा?
कामकाजी महिलाओं ने इस वूमेन हॉस्टल को लेकर रुची नहीं लेने के पीछे एक बड़ी वजह एक शर्त है. प्रशासन ने शर्त रखी है कि महिलाएं अपने पति के साथ नहीं रह सकेंगीं; जबकि शादीशुदा महिलाएं अपने पति व परिवार के साथ किराए पर रह रही हैं. पति व परिवार को छोड़कर हॉस्टल में रहने नहीं आ सकतीं. प्रशासन की भी मजबूरी है कि वह अनुमति नहीं दे सकता. कामकाजी महिलाओं ने इस वूमेन हॉस्टल को लेकर रूचि नहीं लेने के पीछे एक बड़ी वजह एक शर्त मानी जा रही है.
कोरबा नगर पालिका के प्रभाकर पांडेय के अनुसार, बाद में इस भवन के निर्माण का जिम्मा नगर निगम को दिया गया था. निगम ने भवन बनाने के बाद संचालन के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग को हैंडओवर कर दिया. अब जब फर्नीचर खरीदने की बारी आई है तो शिक्षा विभाग को जिम्मा दिया गया है. अधिकारी इस बात को भले खुलकर नहीं बोल रहे हैं, लेकिन हकीकत है कि अब करोड़ों के एक दर्जन भवन प्रशासन के गले की फांस बन चुके हैं.
आपके शहर से (कोरबा)
वकील मीनू त्रिवेदी कहती हैं कि वीमेंस हॉस्टल का प्रचार-प्रसार नहीं होना भी एक बड़ा करण है कि कामकाजी महिलाओं को शासन द्वारा करोड़ों की लागत से बनाए गए व हॉस्टल की जानकारी भी नहीं है. दरअसल, गलत प्लानिंग के तहत बने इन भवनों का उपयोग नहीं हो पा रहा है. उपयोग करने की कई कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं और हर कोशिश में और फंड खर्च करना पड़ रहा है. भवन में रहने वाला कोई नहीं है.
बहरहाल, अगर एक-दो आवेदन आ भी रहे हैं तो प्रशासन को 10 या 15 कमरों के लिए फर्नीचर की खरीदी करनी थी. जैसे-जैसे संख्या बढ़ती वैसे-वैसे फर्नीचर की आपूर्ति की जा सकती थी,. जब भवन बनाया गया तब किसी तरह का सर्वे या राय नहीं ली गई. ऐसे में आम जनता के करों के जरिए इकट्ठे शासन के पैसे का सही उपयोग होता नहीं दिख रहा है.
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Tags: Chhattisagrh news, Chhattisgarh government, Korba news
FIRST PUBLISHED : November 18, 2022, 16:17 IST