गहलोत के निर्देश और हर रणनीति पर रघु शर्मा काम कर रहे थे। लेकिन कोई भी रणनीति कारगर साबित नहीं रही। गहलोत ना तो ग्रामीण क्षेत्रों के परंपरागत आदिवासी वोटों को जुटा पाए और ना ही प्रवासी राजस्थानियों को लुभा पाए। पिछले तीन महीनें में अशोक गहलोत ने ताबड़तोड़ जनसभाएं की। लेकिन कामयाब नहीं हुए।
गुजरात की जनता ने ठुकराया मुफ्त इलाज और सस्ती बिजली
राजस्थान के जोधपुर सहित मारवाड़ के कई जिलों के लाखों लोग गुजरात में रहते हैं। करीब 43 विधानसभा सीटों में राजस्थानी मतदाताओं का अच्छा प्रभाव बताया जा जाता है। गहलोत ने प्रवासी राजस्थानियों को लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। गुजरात में राजस्थानियों के बीच होने वाली सभाओं में बड़े बड़े वादे किए गए। राजस्थान सरकार की योजनाओं के मुताबिक गुजरात का घोषणा पत्र तैयार किया गया। 10 लाख रुपए तक के मुफ्त इलाज, सस्ती बिजली और ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने का वादा किया गया था। इसके बावजूद भी गुजरात की जनता ने उन्हें ठुकरा दिया।
केवल हार ही नहीं बल्कि वोट शेयर भी गिरे
इस बार के चुनावों में केवल हार नहीं मिली बल्कि वोट शेयर भी काफी गिर गया। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था। 77 सीटों पर जीत दर्ज की थी और कुल वोटिंग का 27.3 फीसदी वोट हासिल किया था। इस बार सीटों की संख्या 77 से घटकर 17 ही जीत पाई। साथ ही वोट शेयर भी 14.9 फीसदी की गिरावट आई। वोट शेयर से गिरावट से साफ जाहिर होता है कि गुजरात की जनता ने कांग्रेस से नकार दिया है। उन्हें भाजपा के नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व पर ही भरोसा है।
केजरीवाल को भी नहीं पछाड़ पाए गहलोत
गुजरात चुनाव में इस बार अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भी चुनाव लड़ा। 7.3 फीसदी वोट शेयर के साथ आम आदमी पार्टी 5 सीटें जीतने में कामयाब भी रही। आम आदमी पार्टी की वजह से ही कांग्रेस को भारी नुकसान झेलना पड़ा। भाजपा के वोट शेयर कम होने के बजाय 2.5 फीसदी बढे। जो वोट आम आदमी पार्टी को मिले, वे कांग्रेस के वोट बैंक में से कटे। ऐसे में आप के होने की वजह से कांग्रेस काफी नुकसान में रही।
रिपोर्ट -रामस्वरूप लामरोड़