गहलोत सरकार के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंची बीजेपी, 91 विधायकों के इस्तीफे पर नोटिस जारी, 3 सप्ताह में मांगा जवाब

जयपुर:राजस्थान में कांग्रेस के 91 विधायकों के इस्तीफों पर बीजेपी ने फिर प्रदेश की गहलोत सरकार की परेशानी बढ़ा दी है। इस मसले पर दो महीने बाद भी निर्णय नहीं करने को लेकर दायर जनहित याचिका पर अब राजस्थान हाईकोर्ट (rajasthan high court) ने नोटिस जारी किया है। मंगलवार को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 3 सप्ताह में जवाब मांगा है। इससे पहले याचिका न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव और न्यायाधीश विनोद कुमार भारवानी की खण्डपीठ में सुनवाई के लिए लगी थी। इसमें विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष और बीजेपी नेता राजेन्द्र राठौड़ (rajendra rathore) ने स्वयं पैरवी की।

हाईकोर्ट में सुनवाई के बाद राजेंद्र राठौड़ ने कहा है कि राजस्थान हाईकोर्ट ने नोटिस संविधान के आर्टिकल 190 तीन बी में और राजस्थान विधानसभा के नियम एवं प्रक्रिया के तहत आर्टिकल 208 ए और रूल 173 दो में साफ प्रावधान दिया गया है कि विधायक त्यागपत्र दे सकता है। लेकिन तत्काल प्रभाव से दिए गए त्यागपत्र को वापस लेने का प्रावधान कहीं है नहीं। इसलिए अध्यक्ष को इस पर निर्णय करना है। उन्होंने निर्णय नहीं लिया तो व्यथित होकर हमारा शिष्टमंडल उनसे मिला। उसके बाद न्यायालय के शरण में आए। इसके बाद न्यायालय ने उचित निर्णय लिया और नोटिस जारी किया।
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राठौड़ ने विधानसभा अध्यक्ष और सचिव को बनाया पक्षकारविधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष या नेता प्रतिपक्ष स्तर के जनप्रतिनिधि के हाईकोर्ट में स्वयं बहस करने का संभवतया यह पहला मौका था। हाईकोर्ट में उनकी याचिका में विधानसभा अध्यक्ष और सचिव को पक्षकार बनाया गया है। राठौड़ का कहना है कि अध्यक्ष के पास इस्तीफा मंजूर करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। अध्यक्ष केवल जांच करवा सकते हैं कि इस्तीफा स्वेच्छा से दिया गया है और सही है। लेकिन इस तरह के प्रावधान के बाद भी दो महीने से अधिक वक्त के बाद भी विधायकों के इस्तीफों पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
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राठौड़ ने कैबिनेट मंत्री को दिया धन्यवाद

एक दिसंबर को राजेंद्र राठौड़ ने ट्वीट कर कैबिनेट मंत्री को धन्यवाद दिया था। उन्होंने लिखा, ‘मैं धन्यवाद देता हूं मेरे हितैषी कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास का जिन्होंने मुझे न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की राह दिखाई। जब संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा है तो प्रदेश के हित के लिए न्यायालय की शरण में ना जायें तो फिर कहां गुहार लगाये ?’

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