गणेश चतुर्थी पर मंदिर में उमड़ रही भीड़, उल्टा स्वास्तिक बनाने से मुराद..

सीहोर. देश भर में आज से गणेश चतुर्थी की धूम है. सीहोर के ऐतिहासिक सिद्धिविनायक गणेश मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है. यहां मंदिर परिसर में परंपरा अनुसार 14 दिन का मेला शुरू हो गया है.

सीहोर स्थित सिद्धिविनायक गणेश मंदिर देश के चार स्वयंभू पीठों में शामिल है. ये लगभग 400 साल पुराना पेशवाकालीन माना जाता है. सीहोर के पश्चिमी-उत्तर छोर पर वायव्य कोण पर स्थित यह मंदिर अपनी कलित-कीर्ति के लिए देश-विदेश में विख्यात है. यहां गणेशचतुर्थी से 14 दिन का मेला लगता है.  गणेश चतुर्थी के दौरान भगवान श्रीगणेश के दर्शन करने भक्त सैंकड़ों की संख्या में पहुंच रहे हैं.

बाजीराव पेशवा ने कराया था मंदिर सभामंडप का निर्माण
भगवान गणेश की चार सिद्ध प्रतिमाएं देश के चार स्थानों पर विराजी स्वयंभू पीठ मानी जाती हैं. इनमें राजस्थान के सवाई माधोपुर रणथंभौर गणेश मंदिर, उज्जैन में चिंतामन गणेश, गुजरात में सिद्धपुर और सीहोर के सिद्धिविनायक गणेश प्रथम स्वयंभू पीठ माने जाते हैं. सीहोर के गणेश मंदिर की कहानी रोचक है. बताया जाता है कि इस चिन्तामन गणेश मंदिर के सभामंडप का निर्माण बाजीराव पेशवा ने करवाया. मंदिर का स्तूप श्री यंत्र के कोणों पर स्थित है.

मंदिर भगवान गणेश की मूर्ति की विशेषता
सिद्धिविनायक गणेश मंदिर में भगवान की वर्तमान स्वरूप में दिखने वाली मूर्ति वास्तव में धरती में कमर तक धंसी प्रतिमा का बाहरी रूप है. बताया जाता है साक्षात् प्रतिमा कमर से नीचे तक जमीन में धंसी हुई है. प्राचीनकाल में इसे खोदने के प्रयास भी किये गए, लेकिन सफल नहीं हो सके. आमतौर पर मंदिरों में भगवान श्री गणेश की सूंड बायीं ओर रहती है, लेकिन सिद्धिविनायक गणेश में भगवान की सूंड दांयी है. इससे भगवान सिद्ध औैर स्वयंभू कहलाते हैं.

उल्टा स्वास्तिक बनाने की परंपरा
मंदिर में विराजे भगवान श्री गणेश से भक्त अपनी मनोकामना मांगते हैं और ये पूरी होती हैं. हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार मांगलिक कार्यों में सीधा स्वास्तिक मंगल और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, लेकिन जब यही स्वास्तिक उल्टा कर दिया जाए, तो यह अमंगल का प्रतीक माना जाता है. जबकि सिद्धिविनायक मंदिर में भगवान गणेश के पार्श्व भाग पर भक्तगण मंगल के लिए अमंगल का प्रतीक उल्टा स्वास्तिक बनाते हैं. ऐसा माना जाता है कि उल्टा स्वास्तिक बनाने से मनोकामना पूरी हो जाती है. जब मन्नत पूरी हो जाती है तो उसके बाद सीधा स्वास्तिक बनाकर भगवान का धन्यवाद किया जाता है.

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