इस किसान ने मछली पालन कर बदली अपनी किस्मत, 6 तालाब से सालाना हो रही इतनी कमाई

भास्कर ठाकुर/सीतामढ़ी: अक्सर हमें सुनने को मिलता है कि खेती में अब कोई दम नहीं रह गया है. खेती करके बस किसी तरह गुजारा चल सकता है. कहने का मतलब यह है कि खेती से बस पेट भर सकता है, कमाई नहीं की जा सकती है. हालांकि यह बात पहले के दौर में कुछ हद तक सही थी. लेकिन बदलते दौर के साथ-साथ खेती का ट्रेंड भी बदला है.

नई तकनीक और आईडिया के समावेशन से किसान ना केवल अधिक उपज कर रहे हैं बल्कि जबरदस्त कमाई भी कर रहे हैं. आज हम सीतामढ़ी के एक ऐसे हीं किसान के बारे में बताने जा रहे हैं जो मछली पालन कर बेहतर कमाई कर रहे हैं. यह किसान सीतामढ़ी जिला के बराही के रहने वाले नरेश मुखिया हैं, जो फिलहाल 5 से 6 तालाब में बड़े पैमाने पर मछली पालन कर रहे हैं. वहीं एक तालाब से 1.50 लाख से अधिक की कमाई कर रहे हैं.

6 तालाब में नरेश कर रहे हैं मछली पालन

मछली पालन कर रहे नरेश मुखिया ने बताया कि इसकी शुरूआत करने से पहले आंध्र प्रदेश जाकर प्रशिक्षण लिया. जिला प्रशासन की ओर से इस इलाके के किसानों की टीम बनाकर प्रशिक्षण के लिए भेजा गया था. प्रशिक्षण लेने के बाद हीं गांव में तालाब खुदवाया. एक-एक कर 6 तालाब में मछली पालना शुरू किया. उन्होंने बताया कि अभी इजरायली रोहू, ग्रासकाट, सिल्वर, भकुरा (कतला), नयनी, कमल काट इत्यादि मछलियों का पालन कर रहे हैं.

इसमें रोहू, भकुरा को तैयार होने में एक वर्ष का समय लग जाता है, जबकि पुराने जीरा (बच्चा) महज 6 महीने में तैयार हो जाता है. वहीं सिल्वर और बिझट को तैयार होने में महज 3 से 4 महीने हीं लगता है. मछली पालन करने के लिए वे नोनाही, महादेवपट्टी, बखरी से मछली का बीज मंगवाते है. यहां बेहतर क्वालिटी का बीज मिल जाता है.

सालाना 9 लाख से अधिक की हो रही है कमाई

नरेश मुखिया ने बताया कि साल में एक तालाब से लगभग 1.5 लाख रुपए की कमाई हो रही है. वहीं अगल 6 तालाब के कमाई की बात की जाए तो सालभर में 9 लाख से अधिक की कमाई हो जाती है. उन्होंने बताया कि वर्तमान रोहू मछली की कीमत 250 रुपए है. जबकि सिल्वर की 200 रुपए किलो, बिझट की 240 रुपए, के ग्रास काट और भकुरा का 250 रूपए प्रति किलो व्यापारिक मूल्य है.

वहीं अगर कोई किसान मछली पालन करते हैं तो सरकार की तरफ से 40 से 50 फरसदी तक का अनुदान भी मिलता है. खुद भी इसका लाभ ले रहे हैं. साथ हीं लोगों को मछली पालन के लिए प्रेरित करने के साथ प्रशिक्षण देने का भी काम करते हैं. ताकि मछुआरे को बढ़िया कमाई हो सके. नरेश ने बताया कि मछली को खिलाने के लिए मकई और बाजरे से बने खल्ली का इस्तेमाल करते हैं. साथ हीं दाने भी मछली को खिलाते हैं. जो बाजार में आसानी से उपलब्ध है.

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