मो. सरफराज आलम/सहरसा. मिथिलांचल में एक पुराना गीत है. मरूआ रोटी मारा माछ, कचरी गमके ओए अंगना…कहने का अर्थ यह कि मरूआ की रोटी, मारा किस्म की मछली और कचरी खाने का अपना अलग ही टेस्ट है. पुराने दौर में मरूआ की रोटी का चलन भी खूब था. इसकी डिमांड भी खूब थी. लेकिन जैसे-जैसे गेंहू की खेती और रोटी का चलन बढ़ता गया, मरूआ की खेती सिमटती चली गई. स्थिति यह हो गई कि अभी के दौर में कई ऐसे बच्चे हैं जो मरूआ को जानते तक नहीं हैं. ऐसे में सहरसा जिले के कहरा प्रखंड के किसान भगवान महतो 10 कट्ठा में मरूआ की खेती कर रहे हैं. किसान का कहना है इसकी खेती में काफी कम लागत में मुनाफा अधिक होता है. मेहनत भी कम लगती है.
आपको बता दें कि आधुनिक युग में किसान हाइब्रिड फसलों पर अधिक जोर दिए हुए हैं. इस कारण पुरानी और स्वास्थ्यवर्धक बहुत सी फसलों की खेती धीरे-धीरे विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी है. इसमें मरूआका फसल भी शामिल है. किसानों का यह भी कहना है कि मरूआ की खेती कम लागत के साथ-साथ प्रतिकूल मौसम में भी हो जाती है. लेकिन अब सरकार भी मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने जा रही है. इसका असर है कि अब धीरे-धीरे बिहार के किसान भीमरूआ की खेती करने लगे हैं.
लागत का पांच गुना तक होता है मुनाफा
किसान भगवान महतो बताते हैं कि एक कट्ठा मरूआ की खेती मेंलगभग एक हजार का खर्च आता है. लेकिन फसल पूरी तरह हो जाने के बाद तीन से चार गुना रेट में इसका आटा बिकता है. वे इसे मार्केट में सप्लाई करते हैं. फिलहाल वह 10 कट्ठा में मरूआ की खेती कर रहे हैं. अब फसल तैयार हो गई है, कटाई शुरू कर दी गई है. जानकारों की माने तो मरूआ एक पौष्टिक अनाज है. इसकी रोटी खाने से एनीमिया नहीं होता है. आज के समय में मरूआ की रोटी खाना तो दूर उसके दर्शन भी दुर्लभ हो गए है. पुराने लोग बताते हैं कि मरूआ की रोटी खाने वाले को कभी पेट की बीमारीनहीं होती है. इसका चारा भी मवेशियों के लिए ताकतवर होता है. मवेशी इसे बड़े चाव से खाते हैं.
.
FIRST PUBLISHED : September 03, 2023, 16:47 IST