नई दिल्ली:
भारत ने आज अपने पहले सूर्य मिशन ‘आदित्य एल1’ को लॉन्च कर दिया है. यह प्रक्षेपण इसरो के विश्वसनीय रॉकेट पीएसएलवी के माध्यम से पूर्वाह्न 11.50 बजे श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से किया गया.
मामले से जुड़ी अहम जानकारियां :
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‘आदित्य एल1′ को सूर्य परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर ‘एल1′ (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर हवा का वास्तविक अवलोकन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. पुणे के प्रतिष्ठित ‘इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स’ (IUCAA) के दो वैज्ञानिकों ने शुक्रवार को कहा कि वे अपने उस मुख्य पेलोड के परिणामों का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, जिसे दो सितंबर को ‘आदित्य एल1′ मिशन के साथ प्रक्षेपित किया जाएगा.
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सूर्य के अध्ययन के लिए ‘आदित्य एल1′ को धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर ‘लैग्रेंजियन-1′ बिंदु तक पहुंचने में 125 दिन लगेंगे. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा कि शनिवार को पीएसएलवी सी57 रॉकेट के जरिए किए जाने वाले ‘आदित्य एल1′ के प्रक्षेपण के लिए शुक्रवार को 23.10 घंटे की उलटी गिनती शुरू हुई.
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‘आदित्य एल1′ को सूर्य परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर ‘एल1′ (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर हवा का वास्तविक अवलोकन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
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इसरो के अनुसार, सूर्य और पृथ्वी के बीच पांच लैग्रेंजियन बिंदु हैं, और प्रभामंडल कक्षा में ‘एल1′ बिंदु से उपग्रह सूर्य को बिना किसी बाधा/बिना किसी ग्रहण के लगातार देखकर अध्ययन संबंधी अधिक मदद मिलेगी.
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इस जटिल मिशन के बारे में इसरो ने कहा कि सूर्य सबसे निकटतम तारा है और इसलिए अन्य की तुलना में इसका अधिक विस्तार से अध्ययन किया जा सकता है. इसरो ने कहा कि सूर्य का अध्ययन करके आकाशगंगा के साथ-साथ अन्य आकाशगंगाओं के तारों के बारे में भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है.
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सूर्य पर कई विस्फोटक घटनाएं होती रहती हैं जिससे यह सौर मंडल में भारी मात्रा में ऊर्जा छोड़ता है. यदि ऐसी विस्फोटक सौर घटनाएं पृथ्वी की ओर निर्देशित होती हैं, तो यह पृथ्वी के निकट अंतरिक्ष वातावरण में विभिन्न प्रकार की गड़बड़ी पैदा कर सकती हैं. इसरो के अनुसार, इस तरह की घटनाओं से अंतरिक्ष यान और संचार प्रणालियों में गड़बड़ी हो सकती है, इसलिए इस तरह की घटनाओं की पूर्व चेतावनी पहले से ही सुधारात्मक उपाय करने के लिए महत्वपूर्ण है.
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अंतरिक्ष वैज्ञानिक ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के अधिक शक्तिशाली संस्करण ‘एक्सएल’ का उपयोग कर रहे हैं, जो शनिवार को सात उपकरणों के साथ अंतरिक्ष यान को ले जाएगा. अंतरिक्ष यान में लगे कुल सात उपकरणों में से चार सीधे सूर्य को देखेंगे, जबकि शेष तीन ‘एल1′ बिंदु पर कणों और क्षेत्रों का वास्तविक अध्ययन करेंगे.
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शुरू में, ‘आदित्य-एल1′ अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाएगा. इसे अधिक दीर्घवृत्ताकार बनाया जाएगा और बाद में इसमें लगी प्रणोदन प्रणाली का उपयोग करके अंतरिक्ष यान को लैग्रेंज बिंदु ‘एल1′ की ओर प्रक्षेपित किया जाएगा. जैसे ही अंतरिक्ष यान ‘एल1′ की ओर बढ़ेगा, यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकल जाएगा. पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकलने के बाद, इसका क्रूज़ चरण शुरू हो जाएगा और बाद में, अंतरिक्ष यान को एल1 के चारों ओर एक बड़ी प्रभामंडल कक्षा में स्थापित किया जाएगा। इसे इच्छित एल1 बिंदु तक पहुंचने में लगभग चार महीने लगेंगे.
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उम्मीद है कि आदित्य-एल1 के उपकरण सूर्य के परिमंडल की गर्मी, सूर्य की सतह पर सौर भूकंप या कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई), सूर्य के धधकने संबंधी गतिविधियों और उनकी विशेषताओं, गतिशीलता और अंतरिक्ष मौसम की समस्याओं को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे. ‘आदित्य-एल1′ का प्राथमिक उपकरण ‘विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ’ (वीईएलसी) इच्छित कक्षा तक पहुंचने पर विश्लेषण के लिए जमीनी केंद्र को प्रतिदिन 1,440 तस्वीरें भेजेगा.
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तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) 1987 में अपनी स्थापना के बाद से इसरो के सभी अंतरिक्ष अभियानों में सफलता का एक सिद्ध केंद्र रहा है. तरल और क्रायोजेनिक प्रणोदन प्रणालियाँ भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं की रीढ़ रही हैं, जो पीएसएलवी और जीएसएलवी रॉकेट दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.